पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९०

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बाली झमक वाली लाना, तब फिर पीछे हाथ बढ़ाना—
कोरी मुहब्बत हमें न भावे, बद्रीनाथ दिलजानी सजनवाँ।
काहें गोरी ऐरी मुसुकाती जाती मन मन—
चपल चखन चितवत इत छन छन॥टेक॥
बद्रीनाथ अमल छबि लखि लखि,
बारत लोक लाज तन मन धन॥

  • [१]सुधि तैरी भूलत नाहिँ तनक जादू कछु मार करदाँ॥टेक॥

बद्रीनाथ हाथ मल मल तुम ऊपर, आशिक मरदाँ॥

मन मोती वारत मराल गिरधारी तोरे चाल पै॥
गयन्द छांड़ि मद लखत जुगल पद धुन सुन नूपुर रसाल॥

नाजुक हमारी कलैय्या जनि पकरो॥टेक॥
बदरीनाथ यार दिलजानी पैय्याँ परूँ तोरी लेत बलैय्या॥

प्यारी तोरी सुरतिआ नाहिं बिसरै॥टेक॥
बदरीनाथ अमल आनन लखि भाजत लाजत मैन मुरतिआ॥

सजन प्यारी २ सुरत मन भाई रे॥टेक॥
अब इन दृगन जँचत नहिं कोऊ, जब से सुध बिसराई रे॥
बदरीनाथ यार की चितवन, अब मन बीच समाई रे॥

नैनन नैन मिलाय मार जादू कछु किओ रे॥टेक॥
बदरी नाथ छुटि अलकै घुंघुराली काली ब्याली रे॥
आली बनमाली मुसुकाय हाय मन लिओ रे॥

जावो जी मोहन यार—मोरीं चुरिया दरक गईं रे॥टेक॥
बदरीनाथ पिया जनि बोलो, भावै नहिं यहु प्यार॥


  1. *पंजाबी भाषा

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