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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९१

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—५६९—

बद्रीनारायन बांके यार, लगि जावो गले से करूं प्यार॥
मुसुक्याय मूँठ सो गयो मार, चंचल दृग अंचल दिशि निहार,
चितवत चित चोर लयो हमार॥

छतियाँ न लगो बनवारी श्याम
घतियाँ हम जानी तिहारी श्याम॥टे॰॥
बद्रीनाथ भई सो भई कछु एसई भाग हमारी श्याम॥

प्यारी प्यारी प्यारी तेरी बात,
यार दिल्दार प्यार कर आजा इत आजा इत,
मेरे पास—वारूं तुपै तन मन॥टेक॥
सांवरी सूरत मन मोहनी मूरत यार उर मोतियों का हार,
देखि दृग-देखि दृग, भंग लजात कंज खंज ते न कम॥
बदरीनारायन कविवर सुभ सुर गाय राग रसीली सुनाय,
भोरि चित्त-भोरि चित्त मुसुकुरात कल नाहीं पल छन।
बाँके बाँके तिहारे ये नैन, मीन छबि छीन बनावत,
कहा कहूँ—कहा कहूं कह न जात, जनु जुगल कमल॥टेक॥
बद्रीनारायन दिलवर ने कहीं निहार, गयो जनु जादू मार,
मेरी जान चोखे वान, मनहुँ मयन, छबि सरस अमल॥

लखनऊ के चाल की


जावो जावो जाऊँ मैं तिहारे संग नाही रे—
काल्ह खेल खेलत मरोरी मोरी बाहीं रे॥टेक॥
श्री बदरी नारायण चल हट है तू निपट निडर नटखट,
छल बल भरेई रहत मन माँही रे॥
मैं तू तेरी साँवरी सूरत पर वारी,
नंद के किशोर चित्त चोर बनवारी रे॥टेक॥
श्री बदरीनारायण दिलवर देखन दे छबि अब नैनन भर,
जाँव घर चाहैं बैर मानै ब्रजनारी रे॥