पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९२

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काहे ऐसी करत निडर बरजोरी रे,
चलो हटो जावो छोड़ देओ गैल मोरी रे॥टे॰॥
श्री बदरीनारायन झटपट आय धाय हिय लिपट चट,
नटखट चोली की चली तू तनी तोरी रे॥

ठुमरी


काहे मारत नैन सैनन भाला री॥टेक॥
सुन हे मृग लोचनि! जा दिश नेक विलोकि दियो तुम—
तापै तुरत जादू जनु डाला री॥१॥
छवि ससि संकोचनि! देखि लियो जिन रूप तेरो
कहरत करि आह भरत नाला री॥२॥
एरी मेरी प्यारी! कारी अलकावलि घेरे जनु
विष धर व्याल युगल काली री॥३॥
"लू पै रति वारी"! जिन इन लीनो डस परिगो
बस जनु उन सो यम सो पाला री॥४॥
हे हे कल कामिनी! योगी यती तपसी तज तप
सब फेंक दियो मृग को छाला री॥५॥
दमनी दुति दामिनि! भगत चले भगतीन छाँड़
तजि छाप तिलक कण्ठी और माला री॥६॥
है! है!! दिलजानी!!! हम तो हुए हैरान जान
क्यों दिल को करत हो अरे बाला री॥७॥
तू है लासानी! श्रीबदरीनारायन जू कवि
को काहे देत रहत टाला री॥८॥

सखी कौन सी चूक परी रतियां बतियां नहीं बोलत रूसी रहे॥टेक॥
लंगराई करि करि तरसावत, सरसावत छल बल घतियां॥
बद्रीनाथ यार दिल जानी—आय लगो अब तो छतियां॥