पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९६

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छोड़ तमा भी दौलत हशमत सहेरा में ये जान हा;
चाह रही हरगिज़ न और कुछ एक तेरा ध्यान रहा,
जलाना दिल का सहज है ए बुत? मुशकिल पड़ती निबाह में
ख़ाले ज़न ख़दां.........
कारे इश्क का उठा के हम तो आलम से बेकार बने
डुबो के मज़हब-सारे जब इस मैं से सरशार बने;
पर गुमराही छोड़ के प्यारे अब तो हम हुशियार बने;
करके दोस्ती यार तुम से सब से अगियार बने;
बहर इश्क में डूबी किश्ती को तो लगा देवो थाह में॥
ख़ाले ज़न ख़दां......
खुदा राम से काम न रखकर ज़बां प तेरा नाम रहा,
तोड़ जनेऊ गले में तेरे जुल्फ का दाम रहा;
मैखाने के सिवा न बुतखाने में, काबे से काम रहा,
बजाय पुस्तक हाथ में तेरे इश्क का जाम रहा,
हम तो सब कुछ खोकर बैठे हुये हैं अब तेरी राह में॥
ख़ाले ज़न ख़दां.........
पिला पिला कर शराब ऐ साकी! तू बनाया मस्ताना
सब को खोकर—नाम अलम में धराया दीवाना;
फिदा हुआ है यह दिल तुझ पर ऐ बुत! मिस्ले परवाना
माल जान की—नहीं परवाह ज़रा दिल में आना;
बदरी नारायन है राज़ी—बस टुक तेरी निगाह में
ख़ाले ज़न ख़दां
जनि करो यार दिलवर जानीं छल बल घतियां॥टेक॥
मुसुक्यानि मनोहर मेरे मन मानी, मोर मुकुट माथे मैं मंजुल,
मनो मैन की मूरतिया॥
बिलसत वारिज बदन बेनु युत बर बाजत बानी,
बद्रीनाथ बिलोकि बनक बन बिसरत नाही छन सूरतिया॥