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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९७

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(हो) निरतत नटवर बृन्दाबन॥टेक॥
बिलमावत गावत मुसुक्यावत, छबि निरखत कछु बनक नई;
मनसिज मन मन देखि लजानी, लोचन सावक मृग दृग मानो;
काह कहूँ चितचोर चरित चित चुभि जात चीखी चितवन (हो)॥

कहूँ का हाल मैं आली, लिया चित चोर बनमाली॥
जुल्फ छूटीं वः लट काली, डसैं दिल को सु ज्यों ब्याली॥
कान में सोहती बाली, मधुर अधरानि मैं लाली॥
न बद्रीनाथ की खाली, मुरलिया मोहने वाली॥

ख्याल


सखियाँ री चलके सैय्यां को मनाओहो रूसो पिय दिलजानी॥टेका॥
बिन देखे छिन चैन पड़त नहिं बिसर गईं कुलकानी॥
बद्रीनाथ यार सो अँखियां लगि कै अब पछितानी॥

ध्रुपद


गूजरी बिलोकि श्याम दामे अभिरामे हिये,
सोहतो अमन्द चन्द, चारु विन्द भाल, लाल॥टेक॥
बद्रीनाथ हाथ लकुट, सोहत सुभ सीस मुकुट,
झलक अलक छलक पलक, गौवन में मराल॥

रेखता


लख्यो इक रूप अभिरामा,
लजै लखि जाहि रति कामा॥
लटैं लटकाली चमकाली,
चन्द पैं ज्यों जुगल ब्याली।
नयन कजरा रे रतनारें,
चुटीली चारु मतवारें॥