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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९९

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चन्द अमन्द कपोल जुग लोल लोल दरसाय।
मन धन लूट्यो बिबस करि दुस्सह बिरह बढ़ाय॥
जिय ललचाये मलिनियां॥

केश छोड़ि कर निशि निठुर निज मुख चन्द दुराय।
प्याय मधुर मुसुकानि मद मन दीनो बौराय॥
चितहि चुराये जाय मलिनियां॥

मन धीरज साहस लियो मोठे बैन सुनाय।
अब नहि चितवत निठुर चित पहिले प्रीत लगाय॥
जिय तरसाये जाय मलिनियां॥

व्याकुलता निशि दिन रहत मन मन पीर पिराय।
लगी कटारी प्रेम की अब नहि धीर धराय॥
हिय दरकाये जाय मलिनियां।

मारि खड़ग जुग भौंह पुनि लोभे दृगन लखाय।
कठिन घाव पर लोन यह पापी गयो लगाय॥
पीर बढ़ाये जाय मलिनियां॥

लेत न सुधि कबहूँ निठुर जिय अति रहत अधीर।
यदि कबहूँ लखि परत मुख फेरि बढ़ावत पीर॥
बिरह जगाये जाय मलिनियां॥

बिरली चाल सुजान की मन लै करत न बात।
बद्रीनाथ विनय किये मोरि मुखहि मुसुकात॥
जिय सरसाये जाय मलिनियां॥

ये अखियां सैलानी रँगी दिलजानी सनेहिया रे॥टेक॥
अब नहि सूझत इन्हैं बेद मग लोक लाज कुल कानी।
फिरत पलक नहीं पिये प्रेम मद, ये दिलदार दीवानी॥
लाजत नाहिं लजावत जग कहँ सुरझत नहि उरझानी।
बद्रीनाथ न पूछो प्यारे इनकी अकथ कहानी। रंगी दिल॰॥