पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—५७६—

वह बद्रीनाथ दिलजानी,
लिया मन भौंह जुग तानी॥

छयल तू छली, मोरा रोकता गली॥टेक॥
रोकता नारियां बिरानी जाने देय न पानी,
बद्रीनाथ यार जानी, सीखी चाल न भली॥

बात यार जानी तू न मानी मेरी रे॥टेक॥
बद्रीनाथ यार आओ गले यों न लग जावो,
दिन चार चमक चांदनी है जोश जवानी॥

जाब चली देखा इठलाना, काली नागिन सी बल खाना॥टेक॥
गोरी सूरत पर इतराना, जोशे जवानी से अँगड़ाना;
मस्ताना मन हाय दिखाना, दिल को कर देना दीवाना॥
श्री बदरी नारायन दाना है उसको नाहक ललचाना;
भौंहन की कमान क्यों ताना, नैनों के ये बान चलाना॥

खेमटा


राति बालम हमसे रूसे ताकें तिरछी नजरिया॥टेक॥
जैहैं सैयां परदेसवाँ हमहूं मारि मरबे कटरिया॥
बद्री नारायन सेजिया तजि जाय बैठे अटरिया॥

विचित्र खेमटा


नैनवां लगाये जाय मलिनियां॥टेक॥
पीन पयोधर छीन कटि सरस सलोने गात।
चितवत चहु दिशि चपल चख चित चोरत चलि जात,
कटि लचकाये जाय मलिनियां॥