पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६०३

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गले पर प्यारी फेरी कटारी॥टेक॥
दिल अपने की इच्छा यह अरु बहुत दिनन की चाह तुमारी॥
बद्रीनाथ हाय मत रोको—यार तुम्हें बस सौंह हमारी॥

आली आज अगनवां नजर मोहिं लागी (राम)॥टेक॥
हिय धरकत जिय थर थर कांपत बिरह पीर उर जागी॥
बदरी नारायन पिय सौतिन देखी मोहिँ अभागी॥

नवल बनक बन आये—ठगिहौ केहि आज॥टेक॥
श्रीबद्रीनारायन सजि सुभ साज, नेक गले लग जाओ प्यारे ब्रजराज

सोहै पगरिया धानी सनम सिर॥टेक॥
रँगराते माते नयना तन छलकत मस्त जवानी॥
नवल नागरिन को मन मोहन बद्रीनाथ दिलजानी॥

खिमटा नये चालका


बतियां रतियां बनहौ फेरि तुम॥टेक॥

हमसो एसई कर बतियां छतियां उन्हैं लगैहौ फेरि तुम॥
अधर सुधा मधु प्याय और को इहि जिय को तरसैहौ फेरि तुम॥
कबहूँ लखाय चन्दमुख प्यारे अँखियन सुख सरसैहो फेरि तुम॥
बद्रीनाथ गये पर भीतर कबहूँ न फेरि सरसैहौ फेरि तुम॥

जनि अबहूँ परदेस जाव—सूनी सैय्यां सेज हमारी॥टेक॥
हा हा खात परत पैयां दिलदार यार दिलजानी॥
श्रीबद्रीनारायन लखिये जोबन जोर जवानी॥

छोड़ो छोड़ो कलैया हमारी—जाव चले घर माफ़ करोजी॥टेक॥
श्रीबद्रीनारायन जू जहँ जाय गवांये रैन,
धाय धाय परि परि उन्हीं की लीजै बलैया॥

सैयां मोंहे लादे चम्पाकली॥टेक॥
रोज़ कहत आनत नहिं कबहूँ—हौं बस यार लबार छली॥
बद्रीनाथ झूठ नित बोलत, बात नहीं यह यार भली॥