पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६०६

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मरतहु बार रहत दिलवर के देखन को अरमान॥
जग जंजाल लाख लाग्यो मन भूलत ना वा ध्यान॥
लाभ हानि बदरी नारायन पड़त एक सम जान॥

रूसा सजन बगिया में कोऊ लावै मनाय॥टेक॥
बद्रीनाथ पिया रतियागे हमसो रिसाय,
दैहौं हाथ की कँगना रे जो लावे मनाय॥

तुमी सैयां लीन मोरी मुनरी रे॥टेक॥
बद्रीनाथ सेज पर छूटी, सांची बताओ कितै धर दीन मोरी मुनरी रे।

मोरी मुनरी रे देवरवै लीन॥टेक॥
बद्रीनाथ अजब छल कीनो लपट झपट मोरे कर सों छीन॥

भूलि जनि जैयो यह बतियां रे॥टेक॥
जात बिदेस सन्देस आपनी की लिखियो पतियां रे॥
बद्रीनाथ बेग ही बालम लौट लगो छतियां रे॥

खिमटा


सुरतिआ तोरी नाहीं बिसरै रे॥टेक॥
हिय दरसन पै खीची सी छबि नेकहु नाहिं टरै रे॥
करद परी सो कसकत सोचत बरबस बिकल करै रे॥
सुधि आए औचक चित पर बिजली सी टूट परै रे॥
श्रीबद्री नारायन जू जग के सब सोच हरै रे॥

रूस गयो पिया रात मनाए मोरे मानैना॥टेक॥
चितवत अस जनु कबहुँ की हमसों पहिचानै ना॥
बदरीनाथ यार बेदरदी, नेक दया उर आनै ना॥

बदरीनाथ यार दिलजानी, आओ मोरी डगरिया॥टेक
मोरी गली नित आवत बांधे टेढ़ी पगरिया॥
तोरी सुरत पर मोर जिय ललचै, ताके तिरछी नजरिया॥