पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६०९

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जादू हम पर डाला मारा कहर नजर का भाला रामा।
हरि हरि, गोरी सूरत मीठी मूरत वाला रे हरी।
श्री बदरीनारायन टाला देला कसे निराला रामा।
हरि हरि पड़ा कठिन बस बेदरदी संग पाला रे हरी।

देस मलार


झूलै हो-हिंडोरे सावन जुगल सजीले सरस सरजू के कूलैं।
सिय सिय वल्लभ रति रति पति की उपमा नहिं तूलै॥झूलै हो॥
लली लंक लचकीली लचकत मचकत झूलन हूलैं।
डरनि पीय पीय हिय लगत प्रेमघन मन सों छवि नहिं भूलें॥झूलै हो॥

दूसरी लय


झूलत श्यामा श्याम आली, कालिन्दी के कूल कुंज में।
नाचत मोर पपीहा बोलत, सरस पवन पुरवाई डोलत आली।
सुखद साज वृन्दावन छाजत, जुगुल नवल बानक बनि राजत।
लखि लाजत रति काम॥
पिया मधुर मुरली का बजावत, प्यारी राग मलारहि गावत,
सहित भाव अभिराम॥
बरसत रस मिलि दो प्रेमघन, दोऊ दोउन के जीवन घन,
धन्य दोऊ छवि धाम ॥

दूसरी चाल


हिंडोरे दोऊ झूलत प्रेम भरे॥टेक॥
दोऊ गावत दोऊ भाव बतावत दोऊ ललचात खरे।
दोऊ बतरात नैन में रूसत दोऊ लगि जात गरे।
दोऊ सतरात दोऊ हंसि हेरत दोऊ मन दुहुन हरे।
दोऊ प्रेमघन घन चातक बन दोउन आस अरे।