पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६०८

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गोरिया तूने तो जादू चलाय दीनों रे॥टेक॥
एकहि पलक झलक दिखला दिल दिलवर लाख लुभा लीनो रे॥
श्री बदरीनारायन जू मन लेकै हाय दगा दीनो रे॥

काहे मोरी सुरतिआ भुला दीनो रे॥टेक॥
जबसो गये पतिया पठई नहिँ, चाल निराली नई लीनो रे॥
बदरीनाथ यार दिलजानी वाहु! निबाह भली कीनो रे॥

देखो सारी हमारी भिजा दीनो रे॥टेक॥
पिचकारी मुरारी चला दीनो रे॥
श्रीबदरीनारायन जू पिय भाल गुलाल लगा दीनो रे॥

झूले को कजली


कालिन्दी के कूल कलित कुञ्जनि कदम्ब मैं आवो रामा।
हरि हरि झूलनि की झूखनि क्या प्यारी प्यारी रे हरी।
चमक रही चंचला चपल चहुं ओर गगन छवि छाई रामा।
हरि हरि सघन घटा घन घेरी कारी कारी रे हरी।
प्यारी झूलै प्रिया झुलावै गावैं सुख सरसावै रामा।
 हरि हरि संगवारी सब सखियां वारी वारी रे हरी।
लचनि लंक की संक लली लहि वंक भौंह करि भाखै रामा।
हरि हरि बस कर झूलन सों में हारी हारी रे हरी।
बरसत रस मिलि जुगुल प्रेमघन हरसत हिय अनुरागे रामा।
हरि हरि टरै न छवि अंखियन ते टारी टारी रे हरी॥
निकरल ऊ तो आफत कै परकाला रे हरी ।
औरन के संग जाला रोजै बदलि रंक चौकाला रामा।
हरि हरि, देखत हमके दूरै से कतराला रे हरी।
पहिले परचावाला दम दै दै के फुसिलावैला रामा।
हरि हरि, लै मन देला सौ सौ तरह कसाला रे हरी।