पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—५९१—

खेमटा


सुनि आइ नन्द घर आज बधैया बाज यही।
रानी जसोमति बालक जायो छायो बृज सुख साज।
बड़े भाग सो यह दिन आयो अचल भयो बृजराज।
भये प्रेमघन प्रमुदित सुर पर्यो असुरन पै जनु गाज।
चले आवो ए मेरे सैलानी।
उमडि घुमडि घन घटा घूमि छिति चूमत बरसत पानी।
सूने भवन सजी सेजियां, यह सांझ समय दिल जानी।
बरसि प्रेमघन रसनिसि जागौ करि बतियां मनमानी।

मलार


मो कहं नेकहु नीक न लागत॥टेक॥
उमडि घुमडि घन घेरत हेरत हरखि यो तजि भागत।
परस प्रबल पवन पुरवाई तन मदनानल जागत।
पिया प्रेमघन मिलि रस बरस्यो बेगि यह वर मांगत।

दूसरा


फिरि घन घुमडि घुमडि घिरि आये।
घूमत जनु झूमत मतंग से चारहु ओर न छाये।
फिरि ब्रज बोरन काज आज धौं कोपि पुरन्दर धाये।
गरजनि व्याज बजाय नगारे ध्वज बक अवलि उड़ाये।
बोलत मोरन कीव सुकवि पिक चातक सुजस सुनाये।
इन्द्रधनुष धनु धरि तापैं सर वारि बुन्द बरसाये।
लीने सैन सुभट दादुर की, मार मार रट लाये।
चमकावत चपला कृपान विरही वनितान डराये।
बिन बनमाली पिया प्रेमघन को अब आनि बचाये।