पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१५

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झूला राग गौरी


बलिहारी झोका दीजै ना।
हाहा हिय हहरत तन थहरत अति लागत है डर भारी।
तुम तो ढोटा ढीठ प्रेमघन हम बाला अति बारी।

राग सोहनी


सुघर खेलार यार बनमाली।
बहकिन गाली गाओ॥टेक॥
लखि टुक मुख आपनो तब एहो,
हम पर रंग बरसाओ॥
बालक एक अहीर दीन कें,
सरपति सान जनाओ।
श्री बदरीनारायन नाहक,
वाद विवाद बढाओ।

बनि क्या वसन्त ऋतु आई री।
छित और छवि सों छाई री॥टेक॥

सुभ सौरभ सुमन समीर सनो
संचरत सरस सुखदाई री।
बनि क्या वसन्त...।
कालिन्दी कूल कलित कुंजनि
कोकिल कुल कलरव भाई री।
बनि क्या...।
अवलम्बित औरै ओप अवलि,
अलि अमराई अधिकाई री।
बनि क्या...।