पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६२३

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बसन्त बिन्दु
बहार १


आये न अजौं वै हाय बीर! बौरी बनि बैरिन अमिनियां॥टे॰॥
गुल अनार कचनार सुहाए, औरै आब गुलाब लै आये,
दाऊदी दुति दामिनियां।
गुल्लाले लाली लहकाए, जनु होली खेलत चलि आए।
लखत जगे से जामिनियां।
खेतन अति अतसी सरसाई, सरसो सुमन बसंत ले आई,
पीत परी कल कामिनियाँ।
श्री बदरीनारायन बन में, फूले ललित पलास पवन में
शीतल गति गजगामिनियां।

दूसरी


अब तो लखिए आलि ये अंखियन-कलियन मुख चुम्बन करन लगे।
पीवत मकरन्द मनो माते, ज्यों अधर सुधा रस मैं रातें,
कहि केलि कथा गुंजरन लगें॥
कविवर श्री बद्रीनारायन निज प्यारी के करि आलिंगन, लिपटे
प्रसून मन हरन लगे॥

तीसरी


बगियन बिच बरस रही बहार।
कोकिल कुल कलरव करत कुंज, मानो मनोज के चोबदार
श्री बद्रीनारायन निहार, जग अमराई करि करि सिंगार।
कुसुमित बन सुखमा अति अपार॥