बद्री नारायन जू कवि, लखि फाग की ऐसी छवि।
ग्वाल बाल मदमाते, गावत कबीर औ गारी।
११ शुद्ध काफी
मोपै छैल छबीले—लाल गुलाल न डाल वे।
अरज यही सुन ले वे दिलवर! प्यारे रसिक रसीले।
पिय बद्रीनारायन, ये दृग तेरे रंग रंगीले।
दूसरी
नवल मनावन हार, ए नयो मान मानिनी।
बद्रीनाथ हाथ जोरत, दृग बारिन तोरत तार।
हाहा खातन मानत तौहूं, निपट हठीली नार तू।
तीसरी
लै जोबना कित जाव री, आये फागुन बैरी।
लंगर डगर बिच रहत खरो पिचकारी कर लैरी।
बन माली आली रगरी गाली नित दै री।
बद्रीनाथ गुलाल मलत औचक कर धैरी।
यति
क्यों चितवै मेरी आली री, करि नयन लजीले।
श्री बद्रीनारायन सजनी मान कही कछु मेरी।
मिल बिहरहु गल मै भुज दै संग, सुन्दर स्याम सजीले।
दूसरी
क्यों न चलै उठि खेलन री—होली के दिन मैं
श्री बदरीनारायन जू रंग केसर भर पिचकारी।
अलि चलि छलि छलिया मन मोहन गाल गुलाल मलन मैं।