पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६२९

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दूसरी


आली डाल गयो इन नैनन लाल गुलाल।
औचक आज जात जमुना तट मोहि मिल्यो नन्दलाल।
वा मुसक्यानि हंसनि बोलनि चितवनि चित चोरनि चाल।
बद्री नारायन जू मन मोह्यो करि कछू ख्याल।

और चाल की


सखी फाग के दिन आये। वन उपवन सुमन सुहाये।
बौरे रसाल रसीले, फूले पलास सजीले।
गहि आव गुलाब रंगीले। चित चंचरीक ललचाये।
कल कोकिल कूक सुनाई, जनु बजत मनोज बधाई,
मिलि पौन पराग सुहाई विरही वनिता विलखाये।
मानो युवा युवतीजन, मिलिये प्रिया निज दै मन।
मानहूं सिखावत छन छन तरुवरनि लता लपटाये।
उड़े नभ गुलालन की छवि छिपयो ललित धन जनु रवि।
बद्रीनारायन जू कवि रचि राग फाग यह गाये।
सखि फाग के दिन आये।

दूसरी


ए हो छबीले छैल। अब तो रंग डालन दे रे।
दिन फागुन सरस सुहावन, होली हाय उपजावन।
प्यारे बद्रीनारायन। अब तो लगी जाहु गले रे।
ऐ हो छबीले छैला।

तीसरी


सखी राधिका बनवारी। रंग रंग खेलत दोऊ होरी।
स्यामा सखी संग लीने, रति की छटा जनु छीने।
घनश्याम पै बरसावैं, कर लै लै रंग पिचकारी,