पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४०

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तैसहि आग लगायो बगियन मैं कचनार अनार।
मारन मैन मंत्र सुनि जातन, मधुकर गन गुंजार॥
कहर करन वारी कारी, कोयल की कूक अपार।
सुर न सुहात सिदूरा काफी, राग वसन्त धमार॥
वीर अबीर अगर केसर रंग, लै आगे ते टार।
बद्री नारायन बिन जिय, व्याकुल होत हमार॥

(४५) होली ता॰ रूपक


हाय! मानै कही ना कछू तू लली, लेति सीरी उसासैं, अरी दम पै दम
होली खेलन के दिन आये, तब तू माननि मान मनाये,
मानत नहि पिय के समझाए, सोचत सोच परी दम पै दम।
श्री बद्री नारायन पिय गर, लगि हिये सजनी निज भुज भर॥
चलि अब खेलन फाग परस्पर, काहे बितावै घरी दम पै दम।

(४६)


रंग लै और के संग तू खेल री, ऐसी होली हमैं हाय भावै नहीं॥
लै यह वीर अबीर अनत धर, तानै मत पिचकारी मो पर॥
डफ न बजाय सताय दया कर, फाग की राग सुनावै नहीं॥
यह तो खेल संजोगिन के हित, मेरी विरहानल दाहत चित॥
खेल में बद्री नारायन कित उन बिन एतो सुहावै नहीं।

(४७)


आप गए अलियां गलियां, आज दै छांड री लाज होली तो है।
बेगि बनाव अरी रंग केसर पिचकारिन भर भर लै लै कर॥
फेंकि गुलाल होय नभ धूँधर, साजो सखी साज होली तो है॥
श्री बद्री नारायन दिलवर, गहि नारी बनाय नट नागर॥
गाल गुलाल मलो री त्यागी डर, भूलो सबै काज होली तो है॥