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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३९

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(४०) ठुमरी काफी मैं कलङ्गरा का मेल


भाजत हौ कत पिचकारी मार, झकझोर तोर मोतियों के हार।
रंग बरसावत गावत धमार, सुख सरसावत जावत अपार
बद्री नारायन बांके यार।

(४१)


तिहारे संग को खेलै बनवारी।
लाल गुलाल मलत मुख बरबस, देत हजारन गारी,
बद्री नाथ हाथ लै तकि तकि मारत हौ पिचकारी॥

(४२) काफी


जानी जानी लंगर! तोरी ये लंगराई रे।
मारी पिचकारी सारी हमारी भिजाई रे॥
श्री बद्री नारायन दिलवर, आप धाय लग गयो हाय गर,
भाज्यो मुख चूमि गाल गुलाल लगाई रे॥

(४३)


बड़ो यह नटखट ढोटा है, देखत छोटा है।
श्री बद्री नारायन आली, होली के दिन आज कुचाली।
पिचकारी मारी चट पट बहियां गहि लीनो रे।
चूरियां करकाई हिय लगी अगियां दरकाई रे।
काह कहूं वा नागर नर को री अति खोटा रे॥

(४४) होली का खेमटा


हमैं नहिं नीकी लागै यह आली बसन्त बहार।
पिय बिन सुमन रसाल सरन तकि, मानहुं मारत मार॥
तरु पलाश फूलन के मिस जनु बरसत आज अगार।