पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४२

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बसन्त प्रकरण
बहार


बगियन बिच बरस रही बहार॥टेक॥
कोकिल कुल कलरव करत कुंज, मानहुँ मनोज के चोबदार॥
श्री बदरी नारायन निहार, जग अमराई करि करि सिंगार॥
कुसुमित बन सुखमा अति अपार॥
चिटकन चहुँ ओर लगीं कलियाँ, छबि छाय रहीं ऋतुराज आज ॥टेक॥
फूलत गुलाब गहि आब और, सोंही अमराई सहित बौर॥
लखि गुल अनार मोही अलियाँ॥
क्या मन्द पवन शीतल डोलैं, बन मैं बुलबुल बिहंग बोलैं;
कल कुंजन कूकत कोइलिया॥
श्री बद्री नारायन बहार, होली, बसन्त, काफी, धमार;
सुर सिन्दूरा पूरित गलियाँ।

ऋतु सरस सुखद छबि छाई री॥टेक॥
सुभ सौरभ सुमन समीर सनो,
लोगन सुखमा सरसाई री॥ऋतु सरस॰
कालिन्दी कूल कलित कुंजनि
कोकिल की कलरव भाई री॥ऋतु सरस॰
अवलम्बित और ओप अवलि,
अलि अमराई अधिकाई री॥ऋतु सरस॰
चहुँ चारु चमक चौगुनी चन्द
चख चितवत चितहि चुराई री॥ऋतु सरस०