पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४३

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बागन बिहगावलि बोल बजत
बलि बिमल बसन्त बधाई री॥ऋतु सरस॰
मधु माधव मास मयङ्क मुखी
मानिनी मनोज मनाई री॥ऋतु सरस॰
भल भौंर भीर अभिरी भूलैं
भ्राजनि भुजङ्ग भरमाई री॥ऋतु सरस॰
श्रीयुत बदरी नारायन जू
कविवर बहार तब गाई री॥ऋतु सरस॰

आये न अजौं वे हाय बीर। बौरीं बनि बैरिन आमिनियां॥टेक॥
गुल अनार कचनार सुहाए, औरै आब गुलाब ले आए;
दऊदी दुति दामिनियां॥
गुल्लालै लाली लहकाए, जनु होली खेलत चलि आए,
लखत जगे से जामिनियां॥
खेतन अति अतिसी सरसाई, सरसों सुमन वसन्त ले आई
पीत पटी कल कामिनियां॥
श्री बदरी नारायन बन में, फूले ललित पलास पवन में;
शीतल गति गज गामिनियां॥

रूप के रूप जगत जनाय, छिटकीं चमकीली चांदनियां॥टेक॥
ज्यों चन्द अमन्द अमी अन्हाय, निखरी सोहैं दुति दामिनियां॥
चित चोरनि मैं ज्यों चन्द मुखी, चंचल दृग भोरी भामिनियां॥
सित अभिसारिका चली पिय पै, सजि सित सिंगार कल कामिनियां॥
बन आईं बदरी नारायन, बनिता बसन्त गज गामिनियां॥

ए री मतवाली! मालिनियां कित जादू डाले जात चली॥टेक॥
दिखलाय हाय! कछु कहि न जाय!! उघरत चंचल अंचल छिपाय;
उभरे औचक युग कंज कली॥