पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४५

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पल्लव लै ललित लता लवंग, लपटीं तरु नवल ललाम संग,
लहि फूल अमल मल सकल रंग प्याले जनु कलित सुरा अनंग,
सजि साज आज॰
बिकसे गुलाब गहि आव आन, अलि अवलि सहित शोभायमान,
छिति छबि औलोकन समै जान, जनु लै सत दृग सोभित महान;
सजि साज आज॰
अमराँई में बौरे रसाल, जनु ऋतु पति की बरछी कराल,
कुसुमित बन किंशुक सुमन जाल, मनु नाहर नखयुत रुधिर लाल,
सजि साज आज॰
अति चन्द अमन्द भयो प्रगास, जनु रजनि युवति बिहसन बिलास,
उगि उरगन गन करि तम बिनास मानहुँ आभूषन मनि उजास,
सजि साज आज॰
बेला अरु मौलसिरीन दाम उर हार नबेली धारि बाम,
मोहन मुनि जन मन मनहुँ काम, दिय पाश नवल उज्वल ललाम,
सजि साज आज॰
साहित्य सुधा संगीत सार, गायो बसन्त रागहि सुधार,
बरसाय प्रेमघन रस अपार, शोभित सुरभी सुखमा निहार,
सजि साज आज॰
ऋतु नवल सुखद शोभित बहार, बिहँगावलि राजत डार डार॥टेक॥
सुमनावलि सुखमा कहि न जाय, चित चितवत ही लेती चुराय॥
मिलि सौरभ सरस सुमन्द गौन, पूरित पराग सों बहत पौन॥
धनप्रेम रहो रस बरस प्यार, बगियन चलि बिहरहु मेरे यार॥

मुसुक्यात जात मुख मोरि मोरि,निज प्रीतम पै दृग जोरि जोरि॥टेक॥
कहुँ ग्रीव हिलावत लंक तोरि, कहुँ नाक सकोरति भौं मरोरि॥
कोउ ठोढ़ी दै कर हंसत थोरि, अति जोबन मदमाती किशोरि॥
कहि बदरी नारायन निहोरि, चित चितवत लेतीं चोरि चोरि॥