पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५४

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फाग चाल बिलवाई


न सूरतिया तोरि भूलै मन तें दिल जानी (वारे हां)॥टेक॥
एक तो तरुनाई बैस रे (बरे हां),
दूजे जोबन जोर जवानी रे (बरे हां),
ये मतवारे मानत ना तोरत अँगिया बन डोरी॥
न सूरतिया॰
पिय तुम छाये परदेस रे (बरे हां),
नहि पठवत हाय सँदेस रे,
बेदरदी! तुम हाय दया तजि भूल गये सुधि मोरी॥
न सूरतिया॰
अब आये फागुन मास रे (बरे हां),
गई तुमरे मिलन की आस रे,
मदन सतावत बार बार कहिये अब काह करूं री
न सूरतिया॰
बदरी नारायन यार रे (बरे हां)
मिलिये अब बेगहि धाय रे (बरे हां),
डारि गरे बहियां छतियां लगि खेलहु बालम । (होरी)
न सूरतिया॰
तोरी अँखियां रतनारी मतवारी प्यारे (बरे हां)
मुख तो जनु सारद चन्द रे (बरे हां)
तापै तानत भौंह कमान रे (बरे हां)
गोल कपोलन पैं लटके लट हैं जनु नागिन कारी,
तेरी अखियां॰
यह अधर मधुर के बीच रे (बरे हां)
जनु कुन्द कली से दन्त रे (बरे हां)
मुस्कुराय मुख मोरि मोरि ये करत रहत चितचोरी
तेरी अखियां॰