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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५५

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लचकीली लचकत लंक रे (बरे हां)
कच अभरन हार के भार रे (बरे हां)
छतियन पर जुबना छलक जिय मारत हैं बरजोरी
तेरी अँखियां॰
चलि चलि मराल सी चाल रे (बरे हां)
दिल घायल करत हमार रे (बरे हां)
श्री बदरी नारायन जी! सुधि भूलत नाहीं तोरी
तेरी अँखियां॰

दूसरे चाल का


छोड़ देओ बहियां हमारी॥टेक॥
गारी गावत रँग बरसावत, कर लीन्हे पिचकारी॥
लै गुलाल कर माल मलत हो, भली न बान तुमारी॥
लपटि झपटि उर लागत मोहन, तोरत हार हजारी॥
बद्रीनाथ टुटी सब चुड़ियां, हो बस निपट अनारी॥

होली

एहो छबीले छैल! अब तो रँग डालन दे रे॥टेक॥

दिन फागुन सरस सुहावन, होली हरख उपजावन,
प्यारे बदरी नारायन! आवो लगि जाहु गले रे॥
एहो छबीले छैला॥
लै जुबना कित जावँरी! आये फागुन बैरी॥टेक॥
लँगर डगर बिच रहत खरो, पिचकी कर लै री॥
आये फागुन बैरी॥
बनमाली आली रगरी, गाली नित दै री॥
आये फागुन बैरी॥