पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५९

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श्री बद्री नारायन दिलवर, आय धाय लग गयो हाय गर
भाज्यो मुख चूमि गाल गुलाल लगाई रे॥

होरी भैरवी


बड़ो यह नटखट ढोटा है, देखत छोटा है॥टेक॥
श्री बदरी नारायन आली, होली के दिन आज कुचाली,
पिचकारी मारी चटपट बहिया गहि लीनो रे;
चुरिया करकाई हिय लगि, अंगिया दरकाई रे,
काह कहूँ नागर नट कों, अति खोटा है॥

घनाश्री होली


छबीली! छीन होत कत, छन छबि हरनी! छिन छिन छी जात॥टेक॥
उड़त गुलाल लाल नभ लखियत लाल लवँग लहरात॥
कल कोकिल कूजत कुञ्जनि बिच चित हित सबद सुनात॥
बन बागनि बगरो बसन्त अलि सहित सुमन न सुहात॥
बद्रीनाथ बिलोकत कत नहिं! आब गुलाब प्रभात॥

सखि आये हैं फागुन मास पिया नहिँ आये॥टेक॥
बगिअन मैं फूले गुलाब कचनार अनार सुहाये॥
महुआ फूलि फूले टेसू बन से सब आग लगाये॥
बौरे आम अरी अमरायिन कोकिल कूक सुनाये॥
अभिरी भीर भँवर की भनकत बौरी जिन मोहिँ बनाये॥
उड़त अबीर गुलाल अरगजा केसर रँग बरसाये॥
बाजत डफ मिर्दङ्ग झाँझ सब धूम धमार मचाये।

घाटी वा चैती


नाहक जियरा लगावल रामा बेदरदी के संग॥टेक॥
आशा में यह रूप सुधा के अपनहुँ मनवा गँवावल रामा (रामा)