पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६६०

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अलक जाल महमान पंछी कहँ बरबस आनि फँसावल रामा!
कबहूँ न हँसि बोलो वह प्रीतम रोवत जनम गँवावल रामा!
बद्रीनाथ प्रीति निरमोही सो करि हम भल पावल रामा!

जालिम जोर जुबनवां रामा! कैसे छिपावों॥टेक॥
इन पर नजर गुजर सब ही की, बचत न कोटि दुरावों॥
बद्रीनाथ कहर करिबे हित रुकत न कोटि मनाओं॥

कैसे लागी लगनियाँ हो रामा! मोरी तोरी॥टेक॥
मिलत बनै न चैन बिछुरत नहिं कीजै कौन जतनियाँ हो रामा॥
श्री बद्री नारायन जू यह, अजब नैन उलझनियाँ हो रामा॥

डफ की होली या रसिया


भाजै जनि झांकि झरोखे तैं॥
काह बिगरि जैहै री तेरो मेरे नयननि तोखे तैं॥
बरबस ब्याकुल करत हाय मन मारि चारु चख चोखे तैं॥
चन्द बदन फिर आय दिखा दै हा हा! भाय अनोखे तैं।
प्रेम प्रेमघन मन उपजावत हरत लाज के धोखे तैं।

आवै किन उतरि अटारी तैं॥
घायल करत तिहारे नैना क्यों मारत पिचकारी तैं।
ललित कुंकुमा से कुच तेरे झलकत झीनी सारी तैं॥
बरसावत रस बिहसि प्रेमघन काम जगावत गारी तैं॥

कैसो यह स्वांग सजो रसिया॥
लाल नाम सम लाल रँग्यो तन सुभग सांवरी सूरतिया॥
कारी कामरि लाल लाल सिर मोर मुकुट पीरी पगिया॥
लाल पीत पट लाल माल बन लाल हरेरी बांसुरिया॥
पीये भंग रँगे रँग गाली गांवत बंकत निलज बतिया॥
लाल नाम सच कियो प्रेमघन कौन कहो किन सांवलिया॥