पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/७७

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करि भोजन में कमी किते अंगरेजी बानों।
बनवत पै नहिं बनत कैसहूं ढंग विरानो॥६३०॥
आय स्वल्प, अति खरचीली वह चलन चलै किमि।
टिटुई ऊंटन को बोझा बहि सकत नहीं जिमि॥६३१॥
खोय धर्म धन किते बने नटुआ सम नाचत।
कर्ज लेन के हेतु द्वार द्वारहिं जे जांचत॥६३२॥
उद्यम हीन सबै नर घूमत अति अकुलाने।
आधि व्याधि सों व्यथित, छुधित बिलपत बौराने॥६३३॥
मरता का नहिं करता की सच करत कहावत।
बहु प्रकार अकरम करत विचार न ल्यावत॥६३४॥
ईस दया तजि और भास जिनको कछु नाहीं।
सोई दया उपजावै अधिकारिन मन माहीं॥६३५॥
बेगि सुधारें इनकी दशा सत्य उन्नति करि।
शुद्ध न्याय संग वेई सदा सद्धर्म हिये धरि॥३३६॥
होय देश यह पुनरपि सुख पूरति पूरब वत।
भारत के सब अन्य प्रदेसन पाहिं समुन्नत॥६३७॥