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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/८२

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वत्सासुर पद पकरि घुमाय फेंकि जिन मारयो।
प्रबल बृकासुर चोंच फारि जिन उदर विदारयो॥१०॥
ऊखल सों बंधि जुगल विटप अर्जुन जिन तोरे।
दामोदर कहि भये चकित वृजवासी भोरे॥११॥
निगलि गयो वह यदपि ताहि पहिले तो बिन श्रम॥
सहि न सक्यो पै उगिल्यो तिहि गुनि हुतासनोपम॥१२॥
भगिनी बन्धु विनासक नासन काज सहज अरि।
प्रबल अघासुर तित सों प्रेरित गयो कोप करि॥१३॥
धरि अजगर को रूप अनूप भयंकर कारी।
बायो मुंह आकास अवनि छेके छिति सारी॥१४॥
दन्तावली शृंग श्रेणी पर्वत सी जाकी।
अति प्रशस्त पथ सरिस लखि परत जिह्वा जाकी॥१५॥
ग्वाल बाल अरु गाय बन्स के संग तासु मुख।
प्रविसे जब, कृष्णहु गवने तब तही सहित सुख॥१६॥
निज अरि कहँ जब ही जान्यो वह भीतर आयो।
मूंद्यो तुरतहिं तब अपनो विस्तृत मुख बायो॥१७॥
तब सह सुरभि वत्स गोपाल बाल अकुलाने।
धाय बचावहु कृष्ण आर्त सुर सों चिल्लाने॥१८॥
सुनतहिं नन्द सून निज तन ऐसो विस्तारयो।
छटपटाय अघ मरयो ग्वाल पसु क्लेस विसारयो॥१९॥
पांच वर्ष को बालक महा असुर संहारी।
सुनतहिं अचरज होत न कारन जाय विचारी॥२०॥
महासर्प कालीय विदित जग परम भयंकर।
कालीदह सों पकरि ल्याय नाच्यो तिहि सिर पर॥२१॥
मदित करि तिहि तहँ सों दियो निकारि सिन्धु महँ।
सौ मुखहूँ सों वमित गरल नहिं परस्यो ताकहँ॥२२॥
है अग्रज ताको बलराम नाम औरहु इक।
ताहू ने है कियो काज कैयो अमानुषिक॥२३॥