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गुप्त गोष्ठी गाथा

जानते हैं, और कई बातें उनकी तो ऐसी होती कि क्या कहना है। ये कहते, कि बाबा! अँगरेज़ी चाल के पास न जाओं। साहिब लोग बनने की कामना मत करो परमेश्वर ने तुम्हें काला आदमी बना दिया है, काले कपड़े की कोट मत पहनो। विलायती बनी कोई वस्तु हाथ से न छुयो, व्यर्थ रुपया व्यय मत करो, अधिक आडम्बर मत फैलाओं, समय बहुत निकृष्ट ग्राया है, आमदनी कहीं एक पैसे की नहीं है, और खरच का पहाड़ आगे खड़ा है, बहुत समझ के चलो नहीं तो कौड़ी के तीन तीन हो जायोगे।

छठवें मित्र हमारे परम प्रिय मित्र जनाब फ़यज़मयाब मुअल्लाइलक़ाव नवाब बेकरारद्दौला बहादुर हैं, जिनका प्यार का नाम भोले नवाब है, और वे सचमुच भोले हई हैं। आप यद्यपि मुसलमान है, परन्तु हम लोगों पर ऐसी कृपा रखते और यों हिले मिले रहते हैं कि मानो कुछ भी जातीय भेद नहीं है तस्सुब अथवा आग्रह किसे कहते हैं वे जानते ही नहीं। अवस्था तो आप की बहुत ही कम है परन्तु गुण उनमें बहुत ही बड़े बड़े वर्तमान हैं। स्वभाव' आपका अत्यन्त रसीला और मिलनसार है। उदारता और सुशीलता तो उनमें ऐसी कुछ है कि जिसके कारण ही से उन्हें अनेक दुःख झेलना पड़ता है। मित्र भाव का निर्वाह और प्रेमपरायणता एवम् उनकी अमीरी की कौन बड़ाई की जाय जय कि वे लखनऊ के रहने वाले ही हैं।

आप लखनऊ के एक परम प्रतिष्ठित वंश और शिया मत के मुसलमान हैं। अवध के शाही घराने से आपका बहुत निकट का सम्बन्ध है परन्तु हाँ, "दिनन के फेर से सुमेर भयो माटी को।" जिनके पुरखे एक दिन एक बड़े देश के महाराजधिराज वा बादशाह थे, आज उनके सन्तान दूसरे की प्रजा वा बन्दी बन रहे हैं, और उसमें अनथें तो यह है कि यद्यपि दशा बदल गई, न वह दिन रहे न यह अवस्था, न वह अधिकार और न शक्ति, तथापि चित्त वही है, इच्छा वही है, आलड्वाल और नाम वही है। आप यदि लखनऊ के गली कंचों में धूमिये तो अनेक नवाबजादों की दशा देखकर रोना आये और चित्त करुणा से पूरित हो जाय; कि नाम तो नवाब साहिब बहादुर, और बेचारों के सर पर साबित सफेद टोपी भी नहीं। अँगरखे के दामन में कुंजडिनों से तरकारी लिये, मोल और भाव करने में ताज़ और तख्त की कसम खाते हैं। जो उदासीन भात्र से उनकी दशा देखता उसे कैसी कुछ तसं आती और बुद्धि चकरा जाती है, कि हे भगवान्! तू इनकी यह दशा करके क्या करा रहा है, फिर यदि आप उनके साथ जो कहीं