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प्रेमघन सर्वस्व

तो, यह कौन सी सिड़ समाई।" परन्तु सेठ डरपोकमल जी और श्रीमान भयङ्कर भट्टाचार्य जी का हाल न पूछिये उनकी अकथ कथा है।

राय बहादुर सेठ डरपोकमल जी तो अब मेरा नाम सुन कर भी और आपने मुझे लिख भेजा कि "आप लोगों की मित्रता का फल पा चुका अब न तो मेरे पास पत्र भेजिये, न स्वयं कृपा कीजिये "मैं इसके क्षमापनार्थ उनके घर भी गया, परन्तु उन्होंने देखते ही ऐसा मुँह फुलाया कि खुलना कठिन हो गया। जब मैं बहुत कहने लगा कि मैंने लेख को उपहासार्थ नहीं प्रकाशित किया, बस अपने मित्रों और पाठकों के मनोरञ्जनार्थ और भी जिनमें जितना कुछ गुण दोष है उसका शुद्ध भार से ऐसा चित्र खींचा कि जिसे देख, देखने और न्यायपूर्वक विचारने वाला उससे बहुत कुछ शिक्षा और लाभ उठा सके। यों ही आप लोगों के लेख के भाव के संग पाठकों को आपके शील स्वभाव और गुण से भी ज्ञान रहे तो और भी अधिक उसका आनन्द अनुभव हो, और प्रभाव पड़े, और यदि शुद्ध भाव से लिखने में कुछ असावधानी भी हो गई हो तो क्षमा कीजिएगा। परन्तु उत्तर कौन देता है वह तो सुनते ही क्रोध से भस्म हो गये और उठकर अन्तःपुर में घुस गये। मैं भी उसी दिन से वहाँ से चला पाया तो अब तक फिर नहीं गया। निदान अभी तक वही दशा है कोई परिवर्तन नहीं हुआ। पत्र और मिलाप दोनों बन्द हैं। आश्चर्य तो यह है कि न अकेले वही, वरञ्च अन्य कई मित्रों ने भी कि जो सेठ वा रायबहादुर आनरेरी मजिस्ट्रेट और म्यूनिसपल कमिश्नर मित्रों ने उसे अपने ही ऊपर लगाया। और मुँह फुलाया। फिर न केवल एक इसी नाम पर, वरच दो चार और मित्रों के चरित्र प्रकाशित करने का भी यही फल हुआ।

श्रीमान् भयङ्कर भट्टाचार्य जी की दशा क्या कहें, उनका नाम और काम दोनों भयङ्कर हैं। प्रथम तो वे मेरी लिखी अपनी जन्मपत्री पढ़ते ही उठ खड़े हुए, और सैकड़ों गालियाँ देते मेरे घर आये और कहा कि—'ले अब तेरे उपर मारण मन्त्र का प्रयोग प्रारम्भ करता हूँ। परन्तु उनके प्रसन्न करने की युक्ति तो मैं जानता ही था, अतः मैंने फुसला फुसल्लू कर पहिले तो उन्हें गाढ़ी गाढ़ी दूधिया बूटी पिलाई,क्योंकि इसके लिये वे कभी नहीं नहीं करते इस लिये कि माथुर चौबे हैं, फिर चटपट लाकर उनकी हथेली पर एक के स्थान पर तीन मुद्रा रख दिया, और ऐसी सुश्रूषा की कि-चिरंजीवी यन्त्र लेई तो लिया, और वे मीठे मुँह कुड़बुड़ाते घर चले गये। परन्तु जंब और लोगों और