पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(४)

का अवसर उसे न रहेगा क्योंकि महाभारत भारत ही में हुआ था, और कई सौ वर्ष तक मधिर की नदियाँ यहीं प्रवाहित होती रही हैं। उस समय जब कि संसार में लोग केवल ढेले पत्थर और लाठी सोटे ही को अस्त्र शन्त्र अनुमान करते थे, हमारे यहाँ धनुर्वेद के आचार्य विद्यमान थे। सुतराम् यदि हम साहंकार यह कहें कि हम वीर बंश है, तो कोई वारण करनेवाला नहीं है। हाँ चाहे कोई मुस्करा कर यह क्यों न कह दे कि "हमारे दादा ने घी खाया था, हमारा हाथ सूध लो” को कहावत के अनुसार पुरानी कहानी क्यों गा रहे हो आज अपनी दशा देखो। इस उदाहरण से यह स्पष्ट लक्षित हो जाता है कि लेखक प्राचीन आदर्शों के प्रति गर्वान्वित होकर अपने अतीत की स्मृति में अपने प्राचीन गौरव पर गर्वान्वित होता है, और अपने देशवासियों को गर्यान्वित होने के लिए उत्साहित करता है। वह प्राचीनता का पोषक है।

जहाँ पर उसे अपने देश वासियों में इस भावना का ह्रास दिखाई पड़ता है, और वे आधुनिकता की ओर अधिक प्रभावित हो अपने प्राचीन श्रादी के प्रति अवहेलना की बुद्धि रखते हैं, उस समय वह क्षुब्ध हृदय से अपनी पार्तवाणी में अपने अद्भुत निबंध गुप्त गोष्ठी गाथा में अपने अनन्य मित्र ज्योतिधारी मिस्टर निशाकर धर बेरिस्टर एटला के चरित्र चित्रण में उनके चरित्र द्वारा इस भावना को और स्वष्ट करते हैं। “जोकि एक बड़े बाप के बेटे विलायत जाकर वहां की सुहाग्नी सभ्यता लख अब प्रायः सभी अच्छे होटलों के खाने का स्वाद चख, निज देश में आ जाति से वहिष्कृत हुए हैं।

रात दिन इन्हें अपनी मेम साहिबा की सुश्रूषा करते बीतता, अथवा उन्हें हवा खिलाने, और गेंद खिलाने मित्रों, से मिलने क्लब कमेटी, थिएटर और होटलों में मिलने, वा कमरा और पाईवाग सजाने, गाड़ी घोड़े और कम्पाउन्ड साफ कराने, बिल और नौकरों का हिसाब चुकाने, अथवा शाम्पेन के सुरूर में उनसे बतलाने और परस्पर ज्ञान और गुण सीखने सिखलाने से जो समय बचता उसमें उन्हें प्रथम तो फैशन का विचार आवश्यक रहता है।

कभी तो इधर मुके तो शास्त्र और पुराण ही की निन्दा कर ब्राह्मणों को गाली दे दे कर अग्रान कर चले, और बात बात में हम लोगों को जंगली और असभ्य बनाने लगे। आप धर्म तो कोई भी नहीं मानते क्योंकि