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प्रेमघन सर्वस्व

जो कदाचित न समस्त महाराजाओं वरञ्च सम्राटों के भी बराबर ही बैठने वाले हैं, धन्य हमारे महाराज मानो यह प्रमाणित कर रहे हैं कि आर्य संतानों की आँखों में इन महानुभाओं के समान आज कोई दूसरा समान पात्र इस संसार में नहीं है। और वस्तुतः ऐसा ही है, क्योंकि अब कदाचित भारत के मुख्य धर्माचार्यों में से और किसी की विशुद्ध वंश परम्परा नहीं मिलती।

इस कामदार नगरी के नीचे कामदार गद्दी मसनदों पर गुलाबी बागा पहिने सातों स्वरूप श्री गोस्वामी महाराज लोगों के हैं। अहाहा! धन्य! क्या शोभा है! बीच में बड़े-बड़े अमूल्य हीरों का सरपेच लगाये और अधिकता से केवल श्वेत हीरे ही के अनेक आभूषणों से भूषित काँकरौली पति गोस्वामी श्री बालकृष्ण लाल जी महाराज विराज रहे है। उनके पास वाले उनके ज्येष्ठ भ्राता हमारे लाल बाबा साहिब काशी के श्रीगोपाल मन्दिर के टिकैत गोस्वामी श्री जीवन लाल जी महाराज, और शेष ब्रज, बम्बई और कोटे के महाराज लोग सुशोभित हो रहे हैं, और दोनों पार्श्व में गुलाबी कमखाब के फर्श पर भट (अर्थात् उनके सम्बन्धी लोग) न्यूनाधिक वैसे ही वस्त्राभूषण धारी विराजमान हैं। इन महानुभाओं के मुखाविन्द की शोभा ही कुछ दूसरी है, और एक अद्भुत श्री की छबि छाई' है, अहा इन महाराजों के दर्शन से अद्यापि हमारे प्राचीन आर्य वेष का परिचय सा मिलता है। देखिये! तो इन जवाहिरात से जगमगाते वेष के आगे आजकल की टच्ची चाल पर कैसी घृणा होती है, मानो यह इन्द्र श्रादि आठों दिक पाल हैं जो यहाँ बिराजे हैं, वा सप्तर्षियों की गोष्टी हैं। एवम् उस बुढ़वा मङ्गल की बारात की कदाचित् यही कच्छा नृत्य शाला भी है। यह दूसरा कच्छा बगीचे को लिये कहाँ चला गया? हाँ आज उसी पर अङ्गरेजों का निमंत्रण भी तो है। यह क्या पार में अग्नि क्रीड़ा (आतिशबाजी) भी प्रारम्भ हो गई! हाँ! मङ्गल के अवसर पर यह सामग्री भी तो श्रावश्यक ही है, वाह! यह धमाका, यह चर्खियाँ, यह पटे बाज, यह टट्टी, फुलझड़ी! अहा ये बान कैसे ऊपर जा रहे हैं! ् वाह, ये गज सितारे तो टूट-टूट कर आकाश के सब सितारों को मन्द कर अपनी ही रङ्ग बिरङ्गी प्रभा फैला चले मानो इस बुढ़वा मङ्गल के अवसर पर सुर समूह सुमन वर्षा कर हर्ष प्रगट कर यह बिजली की लाल टेन क्यों इधर घुमाई गई हाँ दुसरे कच्छे की ओर वाह! यह तो श्वेत कच्छा देखते ही देखते अँगरेज़ और मेमों से भर गया! हाहा, इतनी दूर से भी इस विद्युत प्रभा के द्वारा समस्त दर्शनीय वस्तु