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प्रेमघन सर्वस्व

"अब उसका विचार करेंगे, और तब वे उसका आरम्भ करेंगे" कहते ही कहते सबको उसकी सुध भी भुला देते हैं। यद्यपि चेलों को गुरु जी से ऐसे विषयों में पूछने का साहस होना तो स्वभावतः सर्वथा ही असम्भव है।

अस्तु दई के निहोरे अब भी आँख खोलो, यह समय दूसरा आ गया, कर्त्तव्य शून्यता को तिलाञ्जिलि दो और अपने कुरीतियों को अन्दोलन कर स्वयं सुधारों नही तो नई रोशनी वाले ऐसे राजनियम स्वीकृत करा देंगे जिससे तुम्हार प्यारा सनातन धर्म सनातन के लिए अङ्ग-भङ्ग कर दिया जायगा और तब तुम्हारा प्रयत्न "अरण्य रोदन" सा होगा।

१९५१ वै—ना॰ नी॰