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पुरानी का तिरस्कार और नई का सत्कार

"देहु दिखाय दई मुख चन्द लग्यो अब औधि दिवाकर आयन।" अथवा—"पाज़ेब की झनकार के मुश्ताक है हम लोग। क्यों पर्दानशी! पैर हिलाया नहीं जाता?"

फाल्गुन १९५०