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नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा

था जिस जागृति का कुछ अभासा हमारे "आनन्द अरुणोदय" नामक कविता में आया है। यथा—

हुआ प्रबुद्ध वूद्ध भारत निज
भारत दशा निशा का।
समझ अन्त, अतिशय प्रमुदित हो
तनिक तब उसने ताका॥
अरुणोदय एकता दिवाकर
प्राची दिशा दिखाती।
देखा नव उत्साह परम
पावन प्रकाश फैलाती॥
की उन्नति निज देश, जाति,
भाषा, सभ्यता, सुखों की।
तुम सबने सीखी वह बान
रही जो खान दुखों की॥"

निदान वहाँ बङ्ग-भङ्गादि से भग्न हृदय बङ्गवासी और उनसे सहानुभूति रखनेवाली बहुतेरी क्षुब्ध भारतीय प्रजा के संयोग से उत्तेजित जातीय अमर्षाग्नि ने भड़क कर मानो आगामि में फिर प्रार्थना से फलप्राप्ति की आशा-शष्य संकुल को भस्म कर देश में एक नवीन राजनैतिक दल की सृष्टि की, जो अब 'एक्सट्री मिस्ट', गर्म्म वा उग्रनीति वालों के नाम से प्रख्यात हुआ है।

सारांश सामान्यतः अँगरेजी राज्यारम्भ ही और विशेषतः सन् १-५८ ई॰ की राज घोषणा से यहाँ की प्रजा को यह दृढ़ विश्वास हो गया था कि वास्तव में अंग्रेजी शासन का अभिप्राय निःस्वार्थ भाव से केवल भारतोन्नति मात्र है। परन्तु बहुत दिन आशा लगाकर भी जब देख पड़ा कि वे मनोहर बातें केवल कहने ही भर को थीं, कार्य में लाने वाली नहीं, वरञ्च उसके विरुद्ध अब प्रत्यक्ष देश के अर्थ निपट हानिकारक अनेक कार्य होते ही चले जाते और सामान्यतः प्रजामत के विरोध से कोई फल नहीं होता, तब उसके प्रतीकार वा देशोद्धार के अर्थ इस नेशनल काँग्रेस की सृष्टि की, जो स्वदेश-दुर्दशा देखकर असन्तुष्ट देश के शिक्षित समुदाय की महासभा की, जिसके द्वारा बीस वर्ष चिल्लाकर साम्राज्य से न तो, कुछ सच्चा