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नेशनल कांग्रेस की दशा

"शुभसम्मिलन को साँचहूँ
अतिसय सुअवसर यह अहै।
सब सुजन सोचि विचारि
करतब करिय तब रस ज्यों रहै॥
बचि हानि सो निज देस लाभ
विशेष लहि दुख दल दहे।
उत्साह नवल प्रवाह यह
जैसो उठ्यो प्रति दिन बहै॥

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वयो बीज उद्योग जो, सरद सयोग विचारि।
शुभ आसा अङ्कुर उग्यो, जासु हरित दुति धारि॥
तिहि चरिबे हित दुष्ट पशु, घाये बार अनेक।
रक्ष्या रच्छक वृद्ध तुव, जा कहँ सहित विवेक॥
सीच्यों जिहि मिलि आप,...जल दिन वत्सर बीस।
जिहि प्रभाय दल अवलि भरि, साख परति बहु दीस॥

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भई वृद्धि बॅचि घोरतर, कुटिल नीति हेमन्त।
कियो कृया करि कोउ विधि, जौ विधि वाको अन्त॥
प्रविस्यो साहस को सिसिर, फैलावत आतङ्क।
कम्पित करि निज दर्प से, विद्वेषी जन रङ्क॥
विरति विदेशी वस्तु सन, मीत भीत अधिकाय।
सुमं सुदेस अनुराग मय, कुसुम समूह सुहाय॥
कियो प्रफुल्लित सस्य सों, सिल्प सुगन्ध बढाय।
स्त्रम जीवी मधु मच्छिकन, को जनु प्रान अचाय॥

आनन्द को अति यह विषय,
संसय कलू जामैं नहीं।
पर भयङ्कर सो यह
सिसिर सोचहु सहजहीं॥
कृषि हानिप्रद उत्पात याको
घरम, जाहि कहीं कहीं।

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