पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३६५

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कजली की कुछ व्याख्या

कजली वा कज्जली जिसे ग्राम्यजन कजरी कहते हैं, संस्कृत शब्द कजल से निकला है जो कई अर्थों का बाची है, किन्तु मुख्य अर्थ इस शब्दका कालिमा, कालौंछ वा कालिख है; जिसके सम्बन्ध से काजल, अञ्जन, आदि, (३) वर्षा की काली घटा, (२) कजली देवी अर्थात् विन्ध्याचल की काली देवी (३) कजली का त्योहार वा उत्सव (४) तथा कजली रागिनी वा गीत है (५) किन्तु यहां अभिप्राय केवल कजली रागिनी वा गीत, अथवा उस नाम के त्योहार से है, कि जो हरियाली[१] तीज और हरितालिका तीज के बीच में कजली तीज के नाम से प्रसिद्ध है और जो मिली भाद्र कृष्ण तृतीया को इस प्रान्त में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह भी हरितालिका तीज की भाँति केवल स्त्रियों ही का त्योहार है, और पछांह वा राजपूताना की गनगीर (गणगौरि) के समान इस देश की स्त्रियों के विशेष उत्सव और उत्साह का कारण है, वरञ्च कई अंशों में यह उससे भी अधिक है। अथवा यो कहिये, कि—जैसे वृज और उसके चारो ओर, वा सामान्यतः भारत भर में और विशेषतः इस देश में पुरुषों के विशेष उत्साह का त्योहार होली है, ठीक उसी प्रकार से इस प्रान्त में स्त्रियों की कजली[२] है। जैसा उसमें युवक पुरुष अनेक प्रकार के श्रामोद प्रमोद और क्रीड़ा कौतुक से मनोरञ्जन करते, एतद्देशीय युवतियाँ भी इस अवसर पर वैसा ही उत्सव मनाती हैं।

कारण यह कि हमारे इस मध्य देश में दो ऋतु विशेष सुखद होने से आनन्दमय मानी जाती हैं, अर्थात् एक तो बसन्त और दूसरी वर्षा। इन दोनों के भी दो महीने अनुकूल और उचित होने से प्रधान है,—अर्थात् फाल्गुण और श्रावण। उसके भी अन्तिम दिन मुख्य त्योहार रूप से माने गए हैं। सुतराम जैसे बसन्मोत्सव मनाने के लिये यद्यपि सामान्यतः वसन्त पञ्चमी से लेकर चैत्र पूर्णिमा तक वासन्तिक उत्सव नाना रूप में मनाये जाते, परन्तु वसन्तोत्सव का मुख्य त्योहार जिसे होली कहते हैं फाल्गुण शु॰ ११ से


  1. तृतीया नभसः शुक्ला मधु श्रावणिकास्मृता।
  2. भाद्रस्य कज्जली कृष्णा शुक्ला च हरितालिका॥ निर्णुयसिनधु।