पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४५४

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नीलदेवी की समालोचना

नील देवी हमारे प्रियवर श्रीयुत बाबू हरिश्चन्द्रजी रचित ऐतिहासिक दुखान्त गीत रूपक! यह रूपक के राजासूरजदेव की रानी नीलदेवी का अपने पति के प्राण के बदले में स्वयं गाय की भेष में दिल्ली के बादशाह के सेनापति अब्दुल शरीफ खाँ शूर की सभा में जाकर उक्त पति-प्राणहारक शत्रु का बध कर डालने के बीज पर लिखा गया है। यद्यपि इस रूपक के प्रबंध और रचना में कुछ दोष भी क्यों न आ गए हों, पर तो भी हम केवल सुण गान का वर्णन करना उचित न जानते हों, इसमें सातवां दृश्य (विशेष लावनी) आठवां (इसके पागल का पाठ बहुत ही उत्तम है) अच्छे हैं और दसवां में तीनों दृश्य अच्छे हैं। हम इसके नववें दृश्य से उद्धृत कर कुमार सोमदेव के वीर रस भरे उत्साह पूरित वाक्य अपने रसिकों को इसके कविता को परिचय दिलाने के अर्थ यहाँ लिखते हैं।

चलहु वीर उठि तुरत सबै जय ध्वजहिं उड़ाओ।
लेहु म्यान सों खङ्ग खीच रण रंग जमायो॥
परिकर कसि कटि उठो धनुष पै धरि सर साधो।
केसरिया बानो सजि सजि रन कङ्गन बाँधो।
कहदु सबै भारत जय भारत जय भारत जय॥

पौष सं॰ १९३८ आ॰ का॰