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भारतीय नागरी भाषा


ङ॰—उच्च शिक्षा में अपनी भाषा को भी पहुँचाने का प्रबल प्रयत्न कीजिए जिसमें बी॰ ए॰ और एम॰ ए॰ की श्रेणियों में इसे भी स्थान मिले।

च॰—इसके लिये आपको प्रथम ही से अपने साहित्य की अंग पुष्टि करनी होगी। इसी से सामान्य और उच्च शिक्षा के उपयोगी अन्थों के निर्माण का यन करना चाहिये। पुराने सद्ग्रन्थों के अच्छे संस्करण निकालने चाहिये।

आप अपने इस सम्मेलन को पूर्ण परिपुष्ट कीजिये। इसकी शक्ति को बढ़ाइये। परस्पर के बैर विरोध और ईर्षा से हमको दर रखिये और इसकी सम्मिलित शक्ति से लाभवान हूजिये। आप लोग बहुत पिछड़ गये हैं, आप को अभी बहुत कुछ करना है। अपने अभी किया ही क्या है। आप तो अभी उन्हीं स्वत्वों से हाथ धो बैठे हैं कि जिसे आप के पड़ोसी भाई मुद्दतों से भोग रहे हैं।

सर्वप्रथम आपको अपने प्रदेश के राज कार्यालयों में अपनी भाषा के प्रवेश का उद्योग करना चाहिये सरकार ने भी जिसकी आशा दे रक्खी है। अब उसमें आपकी उद्योग शिथिलता ही बनी बनाई बात बिगाड़ रही है। उसके अर्थ अब अत्यन्त तीव्रता से यत्न कीजिये। आर्य जाति मात्र को इस पर मण कर लेना चाहिये कि एक चिट्ट भी अपने अक्षरों को छोड़ दूसरे में कदापि किसी राज कार्यालय में न देंगे और न देंगे। ये अदालती अमले कहाँ तक विघ्न करेंगे! विघ्न से न डरना चाहिये; राजर्षि भर्तृहरि की शिक्षा को अपना मूल मन्त्र बना लेना चाहिये। दूसरा कर्तव्य आपका उतने ही महत्व का अपनी भाषा की शिक्षा के सुधार का है जिसकी दुर्दशा का अन्त नहीं है और बिना जिसके सुधरे कोई सुधार अथवा निस्तार नहीं हो सकता जिसके लिये आपको कई प्रकार के उद्योग करने पड़ेंगे।