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आनन्द कादम्बिनी का नवीन सम्वत्सर

यह किसने समझा था कि वेद के उच्छिष्ट भाग से बने बौद्ध मत की शिक्षा से उत्पन्न खृस्तानी मत की दाल इस धर्म की मूल भूमि भारत में कब मत सकती है। जिन लोगों से समस्त संसार ने धर्म ज्ञान पाया, क्या उनके सन्तान धर्म के विषय में भी अपने त्रिकालदर्शी ऋषियों के सब अटल और अकाट्य सिद्धान्तों को भूल समान्य मनुष्यों के निर्मित मार्ग के अनुगामी होंग। रह न केवल धर्म वरञ्च किस विषय में किसी दूसरे के दिखलाये मार्ग पर अखि बन्द किये अन्धों की नाई कदापि बहुत दिनों तक न चलते जायेंगे बरञ्च जो जैसा और जितना है, उसको वैसा, और उतना ही समझेंगे। यहाँ के देवी मन्तिकवाले जिस विद्या का अभ्यास करेंगे, उसी के प्राचार्य बन उसके सार तत्व की व्याख्या कर निज शिक्षकों को चकित कर उन्हीं से पूजित होंगे।

सारांश संसार का कोई कार्य वा पदार्थ ऐसा नहीं है कि जिसमें छु। गुण ही गुण हों और दोष का कहीं से कुछ भी पुट्ट न हो, वा केवल गुणांश शून्य दोष ही दोष हो। सुतराम् यद्यपि अँगरेज़ी विद्या के प्रभाव से शिक्षित भारतीयों के प्राचार विचारादि में कुछ २ परिवर्तन हुना, किन्तु उसी के द्वारा इन लोगों ने पाश्चात्य ज्ञान से अपने विचारों में सुधार और उसके अनेक नवीन विज्ञानों से लाभ उठाना-मी श्रारम्भ किया। अँगरेजी राज्य प्रबन्ध की त्रटियों के संशोधन और उसके अनेक संकीर्ण हृदय कर्मचारियों की कूट नीति से अपनी रक्षा की युक्ति सोचने और पश्चिमी रीति के शासन की इच्छा करने लगे। इसी भाँति यद्यपि रेल, तार और डाक से अगरेज़ी माल की विक्री बढ़ी और यहाँ के अन्न और धन को विदेश भेजने में सरलता हुई। किन्तु उसी के प्रभाव से दूर दूर के प्रदेश निकट से हो गये और प्रजा को गमनागमन तथा अन्य अनेक प्रकार की सुविधायें भी हुई। समाचार पत्रों और सभात्रों की वक्त तात्रों की स्वतंत्रता प्रदान से प्रजा की आन्तरिक इच्छा यदि गवर्नमेण्ट को ज्ञात होने में सरलता होने लगी, तो उसी के संग . अनेक भिन्न २ मत के लोगों के मत में एकता भी हुई और देश की दुर्दशा के प्रच्छन्न कारणों का ज्ञान सर्वसामान्य जनां में सुगमता और शीत्रता से फैला। विविधि स्वच्छन्द न्यायालयों के द्वारा अस्त्र शस्त्रादि का युद्ध बन्द हो, लेखनी और जिहा की लड़ाई का अभ्यास बढ़ा एवम लोगों के व्यर्थ अर्थ नाश की चाल चली, किन्तु कभी कभी न्यायालयों के वर्ण भेद पक्षपात और अन्यथाचार से प्रायः उसका भरमाला भी खुल कर लोगों की अश्रद्धा का हेतु हुआ। विविधि राजसभाओं में प्रजा के प्रतिनिधियों के मसावेश से