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आनन्द कादम्बिनी का नवीन सम्वत्सर

आशा कर न केवल उन्हीं से हताश हुई, वरञ्च आगे के लिये भी नितान्त निराश हो "वदाम्यहम, ददामिन" का अर्थ समाचली। यों लार्ड लिटन के समय से प्रजा के विश्वास का हास आरम्भ हुआ। और प्रेस एक्ट से देश में अधिक असन्तोष बढ़ा। यद्यपि लार्ड रिपन के राज्य ने उस विश्वास को पुनः परिवर्तित किया, किन्तु एलबर्ट विल ने बिल्कुल ही भ्रम दूर कर देश में दूसरे ही मत का प्रचार किया। मानो तबी से राजनैतिक उद्योग करनः आवश्यक माना गया। क्योंकि यह विश्वास दृढ़ हुया कि अँगरेज़ जाति में भी अवश्य ही सच्चे उदार तथा सहृदय न वर्तमान हैं और वे निष्पक्ष हो ग्रजा का हित भी करनेवाले हैं।

यों जातीय कांग्रेस बैठने लगी और प्रति वर्ष प्रजा अपने दुखडे गा चली। संयोग वश गवर्नमेण्ट ने भी हमारी आशा वर्धनार्थ एकाध सुधार कर दिये। इधर कुछ लोग क्रमशः सफ़ल मनोरथ होने का भी स्वप्न देखने लगे, तो उधर इस बढ़ती हुई राजनैतिक बाढ़ को रोकने की चिन्ता हो चली। उच्च शिक्षा घटाने का उद्योग हुआ लार्ड कज़न आये, उनकी अकाश पाताल मिलाने और जी लुभानेवाली बात सुन लोगों ने समझा कि बस, अब सब ठीक हुआ जाता है। ऐसा राजप्रतिनिधि न भूतो न भविष्यति। जब दूसरा दिल्ली दार हुआ तो लोग प्रथम दबार की कसर कोर की काट छांट देख मुग्ध ऋद्ध हुए। लाट जी बारम्बार ब्रह्मा की सृष्टि का एक बारही दवामी बन्दोबस्त बार डालने की डींग मार चले। लोग सुन २ कर चुप रहे, किन्तु अन्त को उनके आचरण देख बहुतही उद्विम हुये। लाट महाशय भी विलायत की हवा खा पाकर विशेष उत्साह से अपने विचारे कार्य कर चले। उन्होंने यहाँ के शिक्षा विभाग का मूलोच्छेद करना, भारतीयों के अर्थ बची खुची कुछ सेवा वत्ति को भी अपने भाइयों के अर्थ दे देना, बङ्गालियो की बढ़ती जातीय उन्नति के मूलोच्छेदनार्थ बङ्ग का अंगभंग करना स्थिर किया, तब कहीं यहाँ के लोगों का भ्रम दूर हश्रा। क्योंकि—"उधरहि अन्त न होइ नियाहा काल नेमि जिमि रावण राह। यहाँ के विज्ञ लोग श्रीमान की कटनीति और काश्यों की समालोचना और उन का तीव्र प्रतिवाद कर चले। 'लाट महाशय मुन २ कर जामे से बाहर हो गालियां बकने लगे! विरोध और भी बढ़ चला। उनके क्रोध की आग और भड़की "क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविनमः। स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति॥" का प्रत्यक्ष फल देखने में श्राया कि उसी व्यामोह में पड़ आप लार्ड किचिनर से लड़कर घर सिंधारे