पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५५१

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नवीन वर्षारम्भ

मङ्गलमय परमेश्वर की कृपा से किसी प्रकार विगत वर्ष को बिता कादम्बिनी आज अष्टम वर्षारम्भ में निज इष्टदेव उसी सच्चिदानन्द धन परमात्मा को बारम्बार प्रणाम कर यह निवेदन करती है कि यद्यपि व्यतीत वर्ष न केवल अकेले उसी के अर्थ वरञ्च सामान्यत समस्त भारतवर्ष को अत्यन्त अनिष्ठ और दुखित बीता जिसमें कि भाँति भाँति के उत्पात देश में होते रहे कि जो अद्यावधि समाप्त होते नहीं दीखते। प्लेग, विशूचिका और शीतलादि रोगों के प्राधिक्य के अतिरिक्त अवर्षण दुष्काल और महर्षता ने वह समा दिखाया कि जिसे यहाँ के लोग कमी काहे को भूलेंगे! जिसमें हमारा युक्त प्रदेश तो मानों नितान्त ही कातर हो उठा, जहाँ की कथा ही अकथ और अवर्णनीय है। यद्यपि उसके वर्णन की आवश्यकता नही, क्यो कि कदाचित् ही कोई ऐसा भाग्यवान पाठक होगा कि जिसको इसकी दशा ज्ञात न हो, तो भी अन्यत्र इसके वृतान्त पढ़ने की उन्दे सुविधा दी गई है। शोक इन सब से बढ़कर देश में राजनैतिक उपद्रव की वृद्धि और आधिक्य का है कि जो क्रमशः विस्तार पाता चला ही जाता है, जिसे अब यदि हम यह कह दे कि वह क्रमशः समस्त भारत मे व्याप्त हो गया है, तौभी कदाचित कुछ अन्यथा न होगा बल मन बीज के स्वदेशी वस्तु स्वीकार और विदेशी बहिष्कार व्रत रूपी जो दो पत्ते निकले, तो उसमे अनेक सकीर्ण हृदय राज्यधिकारियों की शोर से प्रजादपदमन नीति के संग उग्र दण्डविधान का फूल फूला, जिसमें कि अब उत्कट उपद्रव का फल लगकर देश की सामान्य प्रजा और राज्यधिकारियों को भी कठिन कटु स्वाद चखा कर वह उद्विग्न मानस कर चला है। अनेक असन्तुष्टः भारत सन्तान कदाचित विरुद्धाचरण की भरमार न सहकर अब विरुद्धाचरण पर तत्पर हुए हैं। यों उनका उत्पात और अनेक अदूरदर्शी राज्याधिकारियों का कठोर दण्ड विधान दोनों देश के दुर्भाग्य और दुर्दशा के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। तौभी शोक कि उभय पक्ष से लोग अग्रसर ही होते चले जाते हैं। यदि एक पक्ष दो पग आगे बढ़ता तो दूसरा चार पग और आगे जा पहुंचता है। नही जानते कि इसकी रुकावट कब होगी, क्योंकि देश की ऐसी स्थिति सर्वथा उसकी सब प्रकार से हानि