पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५६७

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अब क्या करें

कहिये! अब क्या करै? और क्या कहैं? या सुनै। अगर बिलम्ब क्षमा प्रार्थना करै, तो क्या समझ कर इसलिये कि अनेक बार कहके भी सच्चा कर कभी न दिखाया, यदि चुप कर रह जाय तो आप लोग जो इसे बज्र दोष मानते हैं। मानो हम भी इसे मान से लिये अनुमान योग्य हो, आपके अनुमान को विशेष सम्मान सहित भवदीय हृदय मे स्थान देने का सामान करै

रहा "कहै" तो क्या? क्या यह? है कि—कुछ दिन तक चारपाई पर चैन करते, डाक्टर साहब की नाजबर्दारी करते, सुधरते सम्हलते, बहलते, टहलते ही टहलते देखते क्या हैं कि—बसन्तोत्सव के उत्सव का चिन्ह न केवल पुष्पोद्यान ही पर किन्तु सारे संसार पर उसका अधिकार संचार होने लगा, शरद की भोली सहनाई फिर सुनाई देने लगी वहार और बसन्त की छेड़छाड़ पर फिर बहार आई, आत्मीय मित्र और सहचर आदि के घर माङ्गलिक समारम्भ के निमन्त्रण आने लगे, पटने से बीबी हैदर आई, गाई, बताई, रिझाई, और सिधाई, बीबी हसना ने भी बनारस का बनारस दरसाया और चल दी। इधर सय्यद अहमद ने अपना तायफा लखनऊ में तैयार कर लगे लोगों को हँसाने डराने बहकाने और उसकाने, और फिर कूद कर अलीगढ़ जा धमके, मदरास गये प्रतिनिधि बिचारे भी बचकर लौट आये, निदान कितने आये और गये। अब लीजिये बसन्त आया होली की धूल उड़ी, वाह क्या सुन्दर बुढवामगल हुआ, अब क्या बसन्त आपही आगये, फिर क्या था अमराइयों में मौर से आन सोभायमान हुथे, बाटिकाओं में गुलेलाला लहलहाये, इस नगरोद्यान में भी धर्मंतक ने गोपालन प्रबन्ध रूपी सुमन बिकसाया—

उस नवीन सुमन की गन्ध, पराग, मकरन्द, सेवन के गुण और प्रभाव अन्वेषण और आख्यान अर्थ निगमागम कानन परिभ्रमण मे मन मलिन्द ऐसा आसक्त हुआ कि आज आपसे सम्भाषण का सयोग मिला, आप की जान आपके अपराधी तो अवश्य है। अतः आप ही से प्रश्न है कि बताइये क्या कहें परिश्रम आप देखे, और हम "क्या कहैं"? अस्तु अबकी बार "क्या

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