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प्रेमघन सर्वस्व

सावैं, अर्थात् विधवा भए पर भी पुनर्विवाह न करने दें, आप तो ७० वर्ष के भी होकर बसन्त, शिशिर पावस के ऋतु में षोडशवर्षी को गले लगा के सोवै और उसी घर में द्वादशवर्षी विधवा युवती अनंग के बाणों से घायल पड़ी विलखावैं, उसी की पुकार सुन क्रुद्धित तो न उठे हों और इस अपराध के फल देने पर तत्पर भए? अथवा श्री विन्ध्यवासिनी के बलि देने वाले महामात्रों पर अप्रसन्न तो न हुए, वा उन दीन गौत्रों की पुकार, जो खाय तो तृण और पिलावैं दुग्ध अपने बच्चों को हर जोतने को दें तिस पर भी मांस के अर्थ जीव जाने के भय से दीनमय पुकार सुन महाकोष को अवलम्ब कर इस संसार के नाश करने पर तत्पर हुए इस प्रलाप्रलय को अपना महाप्रलय का नमूना दिखाया। नोन समुद्र के सदृश गङ्गा जी की बाढ़ और प्रलय मेघ के समान मूसलधार वृष्टि, चारों ओर से पानी पानी दीखता था, उत्तर रंगा जी का कोप, दक्षिण लोहंदी के पानी की झोंक पश्चिम उमला नदी की उमंग, पूरब किनारे ने जुदा ही रंग दिखाया, मानो महा प्रलय से संसार जल मग्न हो गया है, और यह मिरजापूर नगर भर केवल तीर्थराज के समान किञ्चित् जल के ऊपर बचा दिखाई पड़ता है। शहर की नहरै सब बंद हो गई थी अनुमान होता था कि यदि यह पानी कुछ और बढ़ता तो समस्त नगर सत्यानाश हो जाता, लालडिग्गी का तालाब जिसमें हर साल का पानी तवे के बूंद के समान होता था अबकी गंगाजी का पानी या उसकी मोरी के द्वारा जल से पूर्ण कर दिया और शोभा देख पड़ती रही कि मानो मान सरोवर लज्जित होता था, टाडै के दरी से जल के सूक्ष्म परिमाणु बाढ़ के कारण श्नी बाबू गुरुचरण लालजी के बंगले तक जो ठीक उसी दरी के पर्वत के ऊपर है, उड़ उड़ के पाते थे और विचित्र शोभा दृष्टि गोचर होती थी। अष्टभुजी और काली खोह में तो जल प्रवाह और लताओं की लहलहाइट के कारण फैलाश भी झख मारता था। पार में महाराज बनारस के गड़गड़ी का बंगला तो मानों पानी का बताशा भया था, तथा कौन जो अयल मैली पुरानी कथरी के समान हो गया था, गङ्गा जी ने धोबिन का रूप धारण कर उसे भली भाँति धोकर चिकना कर दिया उसके निवासी मनुष्य खटमल आदि जीवों की भांति वृक्षों पर दबके।