पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/९४

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भारतेन्दु अवसान

हे इस सभा को शोभा देने वाले! और इस असह्य शोक में संगी होने वाले! सज्जन सभ्य समूह!!! निश्चय आज उस करुणामय विषय के वर्णन की आवश्यकता आन पड़ी कि जिसे स्मरण कर, न केवल मनुष्य मात्र को शोक मूर्छा आए किन्तु प्रस्तर को भी यदि ज्ञान हो तो मोम सा अवश्य पिघल जाये, जिसके लिखने में हमारी यह लेखनी भी सिर झुकाए थरथराती और चिरचिराहट के मिस अन्तर्नाद कर चिंधारती है। प्रत्यक्ष जिसकी छाती फट गई, और उसने काले आँसुओं की लड़ी से झड़ी लगा दिया हाय! हाय!! यह भारतीय प्रजा का एक ही प्यारा, और भारतप्रकाश का ऊँज्यारा, भारतेन्दु रूपी इन्दु, वह भारत भामिनी के स्वच्छ ललाट का केशर विन्दु, वह अनगिनत गुनों का आकर, और पश्चिमोत्तर देश का प्रभाकर निश्चय आज अस्त हो गया, कि जिस से देश हितैषियों का समाज शोक प्रस्तुत हो गया, आज आर्यों का मान अवश्य घट गया, आज आर्य विद्या का पुष्कर पट गया आज आर्यों का सच्चा हितैषी उनसे मुँह मोड़ गया, आज प्रायवितं का आधार उसे छोड़ गया, आह! वह सर्व-जन-मन-रंजन खनन उड़ गया, जिसके कारण उन्नति आशा का जहाज आज विपत्ति वारिधि में बूड़ गया। सच है! वह ऐसा ही अनुपम जन था, जो सचमुच इस देश का सौभाग्य धन था।न वह केवल कविता के सब देशों का अनन्य महा कवि था, किन्तु हिन्दी भाषा का तो अवश्य मानो छबि था, वह किसका नहीं प्यारा, वह रसिकों के नेत्रों का तारा, वह नागरी-बाला का शृङ्गार करने बाला, वह अभिमानी भारत के हाथ का भाला, यह श्राय बैरियों के शस्त्राधात की ढाल वह उर्दूका कराल काल क्या सचमुच स्वयम् काल के गाल में जा दबा! विधि! तूने यह कौन विचार विचारा है कि जिसमें हमारा कुछ भी नहीं चारा है मनुष्य विचारा इस स्थान पर हैरान है, जैसा किसी उर्दू शायर का बयान है:

"न गोरे सिकन्दर न है कब्र दारा मिटे नामियों के निशां कैसे कैसे" कजा जब कि आ जाती है जी की दुशमन, किसी की नहीं चलती कुछ मुश

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