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शतरंज के खिलाड़ी


कहा-जाकर मिर्जी साहब को बुला ला। किसी हकीम के यहाँ से दवा खावें। दौड़, जल्दी कर। लौंडी गयी,तो मिर्जाजी ने कहा-चल, अभी आते हैं। बेगम साहबा का मिजाज गरम था। इतनी सब कहाँ कि उनके सिर में दर्द हो,और पति शतरंज खेलता रहे। चेहरा सुर्ख हो गया। लौंडी से कहा-जाकर कह, अभी चलिए, नहीं तो वह आप ही हकीम के यहाँ चली जाएँगी। मिर्जाजी बड़ी दिलचस्प बाजी खेल रहे थे; दो ही किश्तों में मीर साहब को मात हुई जाती थी। झुँझलाकर बोले-क्या ऐसा दम लबों पर है? जरा सब्र नहीं होता?

मीर-अरे तो जाकर सुन ही आइए न। औरतें नाजुक-मिजाज होती ही हैं।

मिर्जा-जी हाँ, चला क्यों न जाऊँ! दो किश्तों में आपको मात होती है।

मीर-जनाब, इस भरोसे न रहिएगा। वह चाल सोची है कि आपके मुहरे धरे रहें, और मात हो जाय। पर जाइए, सुन आइए, क्यों ख्वाहमख्वाह उनका दिल दुखाइएगा?

मिर्जा इसी बात पर मात ही करके जाऊँगा।

मीर-मैं खेलूँगा ही नहीं। आप जाकर सुन आइए।

मिर्जा-अरे यार, बाना पड़ेगा हकीम के यहाँ। सिर-दर्द खाक नहीं है; मुझे परेशान करने का बहाना है।

मीर-कुछ भी हो, उनकी खातिर तो करनी ही पड़ेगी।

मिर्जा-अच्छा, एक चाल और चल लूँ।

मीर-हर्गिज़ नहीं, जब तक आप सुन न आवेंगे, मैं मुहरे में हाथ ही न लगाऊँगा।

मिर्जा साहब मजबूर होकर अन्दर गये, तो बेगम साहबा ने त्योरियाँ बदलकर, लेकिन कराहते हुए कहा-तुम्हें निगोड़ी शतरंज इतनी प्यारी