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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ


नहीं, जबान से कही जाती हैं। स्वार्थ दिल की गहराइयों में बैठा होता है। वही गम्भीर विचार का विषय है।

मगर मिट्टन बाई के मुख पर हर्ष की कोई रेखा न नजर आई ऊपर की बातें शायद गहराइयों तक पहुँच गयी थीं। बोलीं-जरूर कर लिया होगा और शायद तुम्हें जल्द तरक्की भी मिल जाय; मगर बेगुनाहों के खून से हाथ रंगकर तरक्की पायी, तो क्या पायी! यह तुम्हारी कारगुजारी का इनाम नहीं, तुम्हारे देशद्रोह की कीमत है। तुम्हारी कारगुजारी का इनाम तो तब मिलेगा, जब तुम किसी खूनी को खोज निकालोगे, किसी डूबते हुए आदमी को बचा लोगे।

एकाएक एक सिपाही ने बरामदे में खड़े होकर कहा- हुजूर, यह लिफाफा लाया हूँ। बीरबलसिंह ने बाहर निकलकर लिफ़ाफा ले लिया और भीतर की सरकारी चिट्ठी निकालकर पढ़ने लगे। पढ़कर उसे मेज पर रख दिया।

मिट्ठन ने पूछा-क्या तरक्की का परवाना आ गया?

बीरबलसिंह ने झेंपकर कहा-तुम तो बनाती हो! आज फिर कोई जुलूस निकलनेवाला है। मुझे उसके साथ रहने का हुक्म हुआ है।

मिट्ठन-फिर तो तुम्हारी चाँदी है, तैयार हो जाओ। आज फिर वैसे ही शिकार मिलेंगे। खूब बढकर हाथ दिखाना! डी० एस० पी० भी जरूर जायेंगे। अब की तुम इन्सपेक्टर हो जानोगे। सच!

बीरबलसिंह ने माथा सिकोड़कर कहा-कभी-कभी तुम बे-सिर-पैर की बातें करने लगती हो। मान लो, मैं जाकर चुपचाप खड़ा रहूँ, तो क्या नतीजा होगा। मैं नालायक समझा जाऊँगा और मेरी जगह कोई दूसरा आदमी भेज दिया जायगा। कहीं शुबहा हो गया कि मुझे स्वराज्य वादियों से सहानुभूति है, तो कहीं का न रहूँगा। अगर बर्खास्त न हुआ तो लैन की हाजिरी तो हो ही जायगी। आदमी जिस दुनिया में रहता है,