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जुलूस

चौथी ने कहा-आप बिलकुल अँगरेज़ मालूम होते हैं, जभी इतने गोरे हैं।

एक बुढ़िया ने आँखें चढ़ाकर कहा-मेरी कोख में ऐसा बालक जन्मा होता, तो उसकी गर्दन मरोड़ देती।

एक युवती ने उसका तिरस्कार करके कहा-आप भी खूब कहती हैं माताजी; कुत्ते तक तो नमक का हद अदा करते हैं, यह तो आदमी हैं।

बुढ़िया ने झल्लाकर कहा-पेट के गुलाम, हाय पेट! हाय पेट!

इस पर कई स्त्रियों ने बुढ़िया को आड़े हाथों लिया और वह बेचारी लज्जिन होकर बोली-अरे, मैं कुछ कहती थोड़े ही हूँ, मगर ऐसा आदमी भी क्या, जो स्वार्थ के पीछे अन्धा हो जाय।

बीरबलसिंह अब और न सुन सके। घोड़ा बढ़ाकर जुलूस से कई गज पीछे चले गये। मर्द लज्जित करता है, तो हमें क्रोध आता है। स्त्रियाँ लज्जित करती हैं, तो ग्लानि उत्पन्न होती है। बीरबलसिंह की इस वक्त इतनी हिम्मत न थी कि फिर उन महिलाओं के सामने जाते। अपने अफसरों पर क्रोध आया। मुझी को बार-बार क्यों इन कामों पर तैनात किया जाता है? और लोग भी तो हैं, उन्हें क्यों नहीं लाया जाता? क्या मैं ही सबसे गया-बीता हूँ? क्या मैं ही सबसे भावशून्य हूँ?

मिठ्ठो इम वक्त मुझे दिल में कितना कायर और नीच समझ रही होगी! शायद इस वक्त मुझे कोई मार डाले, तो वह जबान भी न खोलेगी। शायद मन में प्रसन्न होगी कि अच्छा हुआ। अभी कोई जाकर साहब से कह दे कि बीरबलसिंह की स्त्री जुलूस में निकली थी, तो कहीं का न रहूँ। मिठ्ठो जानती है, समझती है, फिर भी निकल खड़ी हुई। मुझसे पूछा तक नहीं। कोई फिक्र नहीं है न, जभी ये बातें सूझती हैं। वहाँ सभी बेफ़िक्रे हैं; कालेजों और स्कूलों के लड़के, मजदूर, पेशेवर, इन्हें क्या चिन्ता! मरन तो हम लोगों की है, जिनके बाल-बच्चे हैं और