पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

६३
रामलीला


तुम्हारा कोई पहला साबका तो है नहीं। ईश्वर ने चाहा, तो यहाँ हमेशा तुम्हारा आना-जाना लगा रहेगा। अबकी चन्दा बहुत कम आया, नहीं तो मैं तुमसे इतना इसरार न करता।

आबदी-आप मुझसे जमींदारी चालें चलते हैं, क्यों? मगर यहाँ हुजूर की दाल न गलेगी। वाह! रुपये तो मैं वसूल करूँ और मूँछों पर ताव आप दें। कमाई का यह अच्छा ढंग निकाला है। इस कमाई से तो वाकई आप थोड़े दिनों में राजा हो जायँगे। उसके सामने जमींदारी झक मारेगी! बस, कल ही में एक चकला खोल दीजिए। खुदा की कसम, मालामाल हो जाइएगा।

चौधरी-तुम तो दिल्लगी करती हो और यहाँ काफिया तंग हो रहा है।

आबंदी-तो आप भी तो मुझी से उस्तादी करते हैं। यहाँ आप जैसे कइयों को रोज उँगलियों पर नचाती हूँ।

चौधरी-आखिर तुम्हारी मशा क्या है?

आबदी-जो कुछ वसूल करूँ, उसमें आधा मेरा और आधा आपका। लाइए हाथ मारिए।

चौधरी-यही सही।

आबदी-अच्छा, तो पहले मेरे १००) गिन दीजिए। पीछे से आप अलसेट करने लगेंगे।

चौधरी--वाह! वह भी लोगी और यह भी?

आबदी-अच्छा! तो क्या आप समझते थे कि अपनी उजरत छोड़ दूँगी? वाहरी आपको समझ खूब,क्यों न हो। दीवाना बकारे,दरवेश हुशियार।

चौधरी-तो क्या तुमने दोहरी फीस लेने की ठानी है?

आबदी-आगर आपको सौ दफे गरज हो तो! वरना मेरे १००) तो कहीं गये ही नहीं। मुझे क्या कुत्ते ने काटा है, जो लोगों की जेब में हाथ डालती फिरूँ?