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180:प्रेमचंद रचनावली-5
 


कर रहा हूं, लेकिन समझ में नहीं आता क्या करू। एक बात कहकर मुकर जाने का साहस मुझमें नहीं है।

'बयान तो बदलना ही पड़ेगा।'

‘आखिर कैसे?'

‘मुश्किल क्या है। जब तुम्हें मालूम हो गया कि म्युनिसिपैलिटी तुम्हारे ऊपर कोई मुकदमा नहीं चला सकती, तो फिर किस बात का डर ?'

'डर न हो, झेंप भी तो कोई चीज है। जिस मुंह से एक बात कही, उसी मुंह से मुकर जाऊ, यह तो मुझसे न होगा। फिर मुझे कोई अच्छी जगह मिल जाएगी। आराम से जिंदगी बसर होगी। मुझमें गली-गली ठोकर खाने का बूता नहीं है।

जालपा ने कोई जवाब न दिया। वह सोच रही थी, आदमी में स्वार्थ की मात्रा कितनी अधिक होती है।

रमा ने फिर धृष्टता से कहा-और कुछ मेरी ही गवाही पर तो सारा फैसला नहीं हुआ जाता। मैं बदल भी जाऊं, तो पुलिस कोई दूसरा आदमी खड़ा कर देगी। अपराधियों की जान तो किसी तरह नहीं बच सकती। हां, मैं मुफ्त में मारा जाऊंगा।

जालपा ने त्योरी चढ़ाकर कहा–कैसी बेशर्मी की बातें करते हो जी क्या तुम इतने गए बीते हो कि अपनी रोटियों के लिए दूसरों का गला काटो। मैं इसे नहीं सह सकती। मुझे मजदूरी करना, भूखों मर जाना मंजूर है, बड़ी-से-बड़ी विपत्ति जो संसार में है, वह सिर पर ले सकती हूं, लेकिन किसी का अनभल करके स्वर्ग का राज भी नहीं ले सकती।

रमा इस आदर्शवाद से चिढ़कर बोला-तो क्या तुम चाहती कि मैं वहां कुलीगीरी करूं?

जालपा नहीं, मैं यह नहीं चाहती, लेकिन अगर कुलीगीरी भी करनी पड़े तो यह खून से तर रोटियां खाने से कहीं बढ़कर है।

रमा ने शांत भाव से कहा-जालपा, तुम मुझे जितना नीच समझ रही हो, मैं उतना नीच नहीं हैं। बुरी बात सभी को बुरी लगती है। इसका दु:ख मुझे भी है कि मेरे हाथों इतने आदमियो का खून हो रहा है, लेकिन परिस्थिति ने मुझे लाचार कर दिया है। मुझमें अब ठोकरें खाने की शक्ति नहीं है। न मैं पुलिस से रार मोल ले सकता हूं। दुनिया में सभी थोड़े ही आदर्श पर चलते हैं। मुझे क्यों उस ऊंचाई पर चढ़ाना चाहती हो, जहां पहुंचने की शक्ति मुझमें नहीं है।

जालपा ने तीक्ष्ण स्वर में कहा—जिस आदमी में हत्या करने की शक्ति हो, उसमें हत्या न करने की शक्ति का न होना अचंभे की बात है। जिसमें दौड़ने की शक्ति हो, उसमें खड़े रहने की शक्ति न हो इसे कौन मानेगा। जब हम कोई काम करने की इच्छा करते हैं, तो शक्ति आप ही आप आ जाती है। तुम यह निश्चय कर लो कि तुम्हें बयान बदलना है, बस और बातें आप आ जायेगी। रमा सिर झुकाए हुए सुनता रहा।

जालपा ने और आवेश में आकर कहा–अगर तुम्हें यह पाप की खेती करनी है, तो मुझे आज ही यहां से विदा कर दो। मैं मुंह में कालिख लगाकर यहां से चली जाऊंगी और फिर तुम्हें दिक करने में आऊंगी। तुम आनंद से रहा। मैं अपना पेट मेहनत-मजूरी करके भर लेगी। अभी