पृष्ठ:प्रेमचंद रचनावली ५.pdf/१८३

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दारोगा-मैं अभी जाकर पता लगाता हूं।

रमानाथ-आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का खून नहीं कर सकता।

एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोगा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेक्टर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही फिक्र में थी। रूखेपन से बोली-रमा बाबू, यह अच्छा बात न होगा।

रमा ने भी गर्म होकर कहा-आपके लिए न होगी। मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है।

डिप्टी-नहीं,आपका वास्ते इससे बुरा दोसरा बात नहीं है। हम तुमको छोड़ेगा नहीं, हमारा मुकदमा चाहे बिगड़ जाय; लेकिन हम तुमको ऐसा लेसन दे देगा कि तुम उमर भर न भूलेगा। आपको वही गवाही देना होगा जो आप दिया। अगर तुम कुछ गड़बड़ करेगा, कुछ भी गोलमाल किया तो हम तोमारे साथ दोसरा बर्ताव करेगा। एक रिपोर्ट में तुम यों (कलाइयों को ऊपर-नीचे रखकर) चला जायेगा।

यह कहते हुए उसने आंखें निकालकर रमा को देखा, मानो कच्चा ही खा जाएगा। रमा सहम उठा। इन आतंक से भरे घाब्दों ने उसे विचलित कर दिया। यह सब कोई झूठा मुकदमा चलाकर उसे फंसा दें, तो उसकी कौन रक्षा करेगा। उसे यह आशा न थी कि डिप्टी साहब को शील और विनय के पुतले बने हुए थे,एकबारगी यह रुद्र रूप धारण कर लेंगे; मगर वह इतनी आसानी से दबने वाला न था। तेज होकर बोला-आप मुझसे जबरदस्ती शहादत दिलाएंगे?

डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा-हां, जबरदस्ती दिलाएगा !

रमानाथ-यह अच्छी दिल्लगी है।

डिप्टी-तोम पुलिस को धोखा देना दिल्लगी समझता है। अभी दो गवाह देकर साबित कर सकता है कि तुम राजद्रोह की बात कर रहा था। बस चला जायगा सात पाल के लिए। चक्की पीसते-पीसते हाथ में घट्टा पड़ जायगा। यह चिकना चिकना गाल नहीं रहेगा।

रमा जेल से डरता था। जेल-जीवन की कल्पना ही से उसके रोएं खड़े होते थे। जेल ही के भय से उसने यह गवाही देनी स्वीकार की थी। वही भय इस वक्त भी उसे कातर करने लगा। डिप्टी भाव-विज्ञान का ज्ञाता था। आसन का पता पा गया। बोला-वहां हलवा पूरी नहीं पायगा। धूल मिला हुआ आटा की रोटी, गोभी के सड़े हुए पत्तों का रसा, और अरहर के दाल का पानी खाने को पावेगा। काल-कोठरी का चार महीना भी हो गया, तो तुम बच नहीं सकता। वहीं मर जायगा। बात-बात पर वार्डर गाली देगा; जूतों से पीटेगा, तुम समझता क्या है।

रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था प्रतिक्षण उसका खून सूखा चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। कांपती हुई आवाज से बोला-आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही ! भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊंगा न, फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायगी। जब आप यहां तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूं। जो कुछ होना होगा, होगा।

उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुंच गया था, जब जरा-सी सहानुभूति, जरा-सी